₹419 ₹600 30.17% off
Bhagavadgita Dwara Swayam Ko Mukta Karen "भगवद्गीता द्वारा स्वयं को मुक्त करें" Book In Hindi - Acharya Pundrik Goswami
गीता आध्यात्मिकता का सर्वाधिक आकर्षक परिचय है, क्योंकि भगवद्गीता की पृष्ठभूमि में युद्धक्षेत्र और दो भाइयों के बीच युद्ध है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि यह उपदेश जंगल में नहीं दिया गया, क्योंकि जंगल में मन और विवेक के मध्य विवाद की आवश्यकता ही नहीं है। जंगल में जा भी वही सकता है, जिसने मन को जीत लिया है; जिसने मन को नहीं जीता हो, वह जंगल में होते हुए भी जंगल में नहीं हो सकता, इसलिए यह युद्ध के मध्य का विषय है। सारा जीवन युद्ध का मैदान ही तो है और तुम्हें उसी में सही और गलत के मध्य खड़े रहना है। यह युद्ध दो शत्रुओं के मध्य नहीं, दो भाइयों के मध्य है। सबसे बड़ा विषाद यहीं खड़ा होता है, क्योंकि दो अपनों में ही, मन और विवेक के मध्य युद्ध होता है, जबकि शत्रु के लिए यह तो सीधी सी बात है; उससे तो तुम लड़ ही पड़ोगे, पर यह मनमोहक है। जब युद्ध की बात शुरू होती है, तब अर्जुन बीच में पहुँच जाता है और रथ में बैठकर अपने सामने वालों को देखता है; फिर कहता है, मैं युद्ध नहीं लड़ूँगा। अब उसके सामने दो विरोधाभास (Two Paradoxes) आते हैं। अर्जुन युद्ध से निवृत्त होना चाहता है, पर श्रीकृष्ण उसे युद्ध के लिए प्रेरित करते हुए कहते हैं, ‘क्या बात करता है? उठ, खड़ा हो! युद्ध कर! तुम्हें चाहिए कि तुम उन्हें मार डालो, तुम्हें उठ खड़ा होना चाहिए। क्या तू नपुंसकों की तरह व्यवहार कर रहा है?’ और जब अर्जुन युद्ध करने को तैयार हो जाता है तो श्रीकृष्ण उससे कहते हैं—‘बिना किसी घृणा भाव से लड़ो; बिना किसी ईष्र्या-द्वंद के युद्ध करो।’