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संसार के समस्त प्राणी सुख और सफलता की खोज में व्याकुल हैं। वे सोचते हैं कि हम कुछ भी कर लें, परंतु सुख और सफलता नहीं मिलती। साथ ही, सभी प्राणी आवागमन के कुचक्र से सदा के लिए छुटकारा चाहते हैं। मनुष्य की इन दोनों महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के मार्ग भगवद्गीता में निहित हैं। ‘गीता’ एक उत्कृष्ट धर्मग्रंथ है।
‘गीता’ को अनेक बार पढ़ने पर भी ऐसा लगता है कि अभी उसकी गहराई तक नहीं पहुँचा गया है। प्रत्येक बार गीता पढ़ने पर मन में नए-नए विचार उत्पन्न होते हैं, नए-नए रहस्य खुलते हैं।
भगवद्गीता सुंदर और सरल संस्कृत भाषा में लिखा हुआ पावन ग्रंथ है।
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अनुक्रमणिका
प्राकथन — Pgs. 7
1. शास्त्रोत सर्वम प्रार्थनाएँ — Pgs. 11
2. ‘गीता’ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं मूल पाठ — Pgs. 15
3. गीता-महव : जीवन में गीता की आवश्यकता यों है? — Pgs. 19
4. भगवद्गीता का यथार्थ संक्षेप : गीता-ज्ञान — Pgs. 23
5. ज्ञानयोग — Pgs. 24
6. कर्मयोग — Pgs. 36
7. कर्मसंन्यास — Pgs. 46
8. भतियोग — Pgs. 50
9. योगी/युत/आत्मसंयमी — Pgs. 61
10. प्रकृति अथवा योगमाया (त्रिगुणात्मक माया) — Pgs. 65
11. पुनर्जन्म1 — Pgs. 76
12. मोक्ष — Pgs. 78
13. ईश्वर — Pgs. 85
14. भगवद्गीता के कतिपय अनमोल वचन — Pgs. 90
15. भगवद्गीता का यथार्थ मानांकन : गीता-उपदेश : गीतासार — Pgs. 95
डॉ. जी.के. वार्ष्णेय हाल ही में श्याम लाल कॉलेज (सांध्य), दिल्ली विश्वविद्यालय से एसोशिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।
वे वाणिज्य विभाग के अध्यक्ष तथा कॉलेज के चीफ प्रॉक्टर रहे। श्यामलाल कॉलेज में इगनू स्टडी सेंटर के को-ऑर्डीनेटर रहे; उनको इंग्लिश, हिंदी, संस्कृत तथा उर्दू भाषाओं का ज्ञान है। उन्होंने वाणिज्य के विभिन्न विषयों पर सोलह पुस्तकें लिखी हैं तथा हिंदू धर्मग्रंथों के अध्ययन में अपनी विशिष्ट रुचि सर्वदा बनाए रखी है, जैसे—वेद, उपनिषद्, समृतियाँ, सूत्र, महाभारत, रामायण, पुराण आदि तथा साथ ही ईसाई तथा इसलामी धर्मग्रंथों का भी अध्ययन किया है। पत्रिकाओं में धार्मिक तथा आध्यात्मिक विषयों पर लेख भी लिखे। उनका सुविचारित मत है कि गीता विश्व के सर्वोच्च धर्मग्रंथों में से एक है। इसमें प्रत्येक मानवीय समस्या के संबंध में तर्कसंगत समाधान उपस्थित है। साथ ही इसमें प्रबंधकीय विदग्धता विकसित करने की शिक्षाएँ सन्निहित हैं। उनका विश्वास है कि व्यक्तियों के साथ तथा विश्व में घटित होनेवाली विभिन्न घटनाओं का वास्तविक उत्तर गीता का ‘कर्म सिद्धांत’ है। उनका आदर्श-वाक्य है— समाज की निष्कास सेवा।’