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भगवान अटलानी की कृतियों को सन् 1988 से पढ़ता रहा हूँ। उनमें नए युग के विषयों को पकड़ने और कथा के रूप में पिरोने की चामत्कारिक क्षमता है। भाषा में विस्तार के साथ प्रवाह है। कथानक प्रस्तुत करने की उनकी अलहदी व अंदर उतर जानेवाली अनूठी शैली है। जिन चरित्रों की अटलानी सृष्टि करते हैं, जिन कथ्यों को वे कहानियों में बिंबित करते हैं, वे सब वायव्य, मायावी व काल्पनिक न होकर सीधा जीवन से जुड़ते हैं।
भगवान अटलानी की कहानियों को पढ़ना एक नए अनुभव-संसार से गुजरना है। नए-नए पात्रों, नई-नई घटनाओं और नई-नई संवेदनाओं का जगत् एक के बाद एक सम्मोहित करते हुए पाठक को अपने भीतर समेटता चलता है। सारी मानवीय त्रासदी के बीच मनुष्य के अप्रतिहत अस्तित्व के प्रति आस्था का अमंद आलोक नई राहों का, सकारात्मकता व समाधान का दिग्दर्शन कराता है। भगवान अटलानी की साहित्य साधना मानवीय संघर्ष की अपराजित कथा है। सार्वभौम और सार्वकालिक मानव-मन की प्रतिश्रुति से उनकी कहानियाँ चिरकाल तक आनंद निःसृत करती हैं।
—डॉ. तारा प्रकाश जोशी
प्रख्यात कवि, लेखक व
पूर्व आइ.ए.एस. अधिकारी
जन्म : 10 मार्च, 1945, लाड़काणा (सिंध, अब पाकिस्तान)।
शिक्षा : बी.एस-सी.।
पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान सिंधी अकादमी; पूर्व अधिकारी, भारतीय स्टेट बैंक।
रचना-संसार : हिंदी में 13, सिंधी में 8, स्वयं द्वारा अनूदित 3, अन्य भाषाई लेखकों द्वारा अनुदित 6 कुल 30 पुस्तकें। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 1200 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। 250 से अधिक कार्यक्रम आकाशवाणी/दूरदर्शन से प्रसारित। अनेक नाटक मंचित-प्रसारित। 20 से अधिक संकलनों में रचनाएँ सम्मिलित।
सम्मान-पुरस्कार : अकादमियों, सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं से 35 पुरस्कार और 50 से अधिक प्रतिष्ठित सम्मान।
साहित्य अकादेमी के सिंधी पुरस्कारों की जूरी के अनेक बार सदस्य। वर्तमान में साहित्य अकादेमी के सिंधी सलाहकार बोर्ड के सदस्य व मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एन.सी.पी.एस.एल. से संबद्ध।