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अखंड चेतना का पर्याय है भारत। यह मात्र एक भौगोलिक इकाई नहीं, जिसे नदियों, पहाड़ों, मैदानों या समुद्र-तटों से परिभाषित किया जा सके। यह तो संस्कृति की सनातन यात्रा का यायावर है। इसे हम आलोक का महापुंज भी कह सकते हैं। ‘भा’ का अर्थ प्रकाश ही तो होता है। भा+रत यानी प्रकाश में रत, प्रकाश में लवलीन, या यों कहें कि प्रकाश को अपने में समाया हुआ देश। विश्व में अनेक देश हैं—बड़े भी, छोटे भी; धनवान् भी, गरीब भी; साम्राज्यवादी भी, शोषित भी; सामंती भी और लोकतांत्रिक भी। फिर भारत की ऐसी क्या विशेषता है, जिसे हम एक अलग पहचान दे सकें? यह पहचान है आत्मप्रकाश के चिरंतन वैभव की। यह पहचान है असत्य से सत्य की ओर ले जानेवाली; अंधकार से आलोक की ओर ले जानेवाली तथा नश्वरता से अमरता की ओर ले जानेवाली उसकी अटूट सांस्कृतिक परंपरा की। शताब्दियाँ बीत गईं, पर यह पहचान अक्षुण्ण रही। परिस्थितियों के झंझावात इसे कभी भी धूमिल नहीं कर सके, न कभी कर सकेंगे।
हमारे पर्वों-त्योहारों में, हमारे पूजा और अनुष्ठानों में, हमारे लौकिक रीति-रिवाजों में, हमारे हर्ष और शोक में या यों कहिए कि हमारे संपूर्ण लोक-व्यवहार में इसी निधि की, यानी भारतीयता की अखंड छाप बनी रही। तभी तो ‘यूनान, मिस्र, रोमाँ, सब मिट गए जहाँ से/कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’ भारत और भारतीयता को विस्तृत आलोक में समझानेवाली एक ज्ञानपरक पुस्तक।
जन्म : 16 मार्च, 1939
शिक्षा : एम.ए. ( राजनीति विज्ञान), एम.एड. ( रिसर्च स्कॉलर) ।
कार्यक्षेत्र : अध्यापन ।
सम्मान : राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर द्वारा रचनाधर्मिता, महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ ज्ञान की पुस्तक लेखन पर सम्मान । राजस्थान सरकार द्वारा शिक्षक पुरस्कार । भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा पर्यावरण पुस्तक लेखन पर राष्ट्रीय स्तर का प्रथम पुरस्कार ।
राजस्थान सरकार पर्यावरण विभाग द्वारा पत्रवाचन पर राज्यस्तरीय सम्मान ।
राष्ट्रीय एवं प्रांतीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में सैकडों लेख प्रकाशित ।
कृतियाँ : जनसंख्या प्रदूषण और पर्यावरण, जनसंख्या विस्फोट और पर्यावरण, मानव और पर्यावरण, असंतुालित पर्यावरण और विश्व, पर्यावरण एवं महिलाएँ, पृथ्वी सौर कुकर कैसे?, प्रौढ़ एवं पर्यावरण, पर्यावरण शिक्षा, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण ।
संपर्क : कीकाणी व्यासों का चौक बीकानेर ।