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"इस पुस्तक में आप पढ़ेंगे एक अहिंसक तानाशाह को, जिसने नियमों को हमेशा ताक पर रखा। कहानी कम्युनिज्म के नशे में चूर एक युवा नेता की, जिसने यहाँ तक कह दिया कि “सोवियत की जेलों में रहना बेहतर है, बजाय भारत की किसी फैक्टरी में काम करने से !'' कहानी एक ऐसे संगठन की, जो राष्ट्रहित को सर्वोपरि मान कर भारतीय अस्मिता की रक्षा के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहा। साथ ही हम जानेंगे, आखिर कैसे रचा गया खालिस्तान का षड्यंत्र ? कितनी बार हुआ कश्यप की धरती पर उन्हीं के वंशजों का पलायन ? हम बात करेंगे इतिहास के मिथ्याकरण की, जिसमें कपटपूर्ण चालों से झूठ को सच बताया गया।
आप पढ़ेंगे एक ऐसे वीर को, जिसके साहस के आगे समुद्र को भी अपनी रफ्तार धीमी करनी पड़ी और फ्रांस जैसे सशक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति को त्यागपत्र तक देना पड़ा।
आज आवश्यकता है इतिहास के पुनरावलोकन की, ताकि हम स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करनेवाले सच्चे वीर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें एवं उनसे प्रेरणा लेकर भविष्य की चुनौतियों का हल निकालने का प्रयास करते हुए स्वाधीनता की 100वीं वर्षगाँठ पर भारत को एक विश्वगुरु के रूप में प्रतिस्थापित कर सकें |"