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सभ्यता के प्रभातकाल से ही मानवीय, संवेदनात्मक, प्रेमिल, सहिष्णु, त्याग, क्षमा, दया, सद्व्यवहार को महत्त्व देनेवाले लोग, साधु-संन्यासी और फकीर-औलिया इस भारत-भू पर अवतरित होते रहे हैं, जो अपना संपूर्ण जीवन जनमानस की सुप्त आत्मा को जगाने, उसे उन्नत करने, परमार्थ एवं समाजड़कल्याण में सहर्ष लगाते रहे हैं।
संतों की संस्कृति वेदना-संवेदना की संस्कृति है, यथार्थ की धरती पर अवतरित अध्यात्मभाव की संस्कृति है। घोर कष्टों, संकटों, अभावों और घोर अपमानों को सहकर दूसरों को उठाने, खड़ा करने और उन्हें सद्मार्ग दिखाने का महाकर्म है— संतों का जीवन।
‘भारत के महान् संत’ में संतों की पूरी पाँत—कबीर, नामदेव, रैदास, दादू, नानक, मलूक, मीरा, फरीद, तिरुवल्लुवर इत्यादि के परोपकारी जीवन का सांगोपांग वर्णन है। विद्वान् लेखक का मानना है कि भारतीय संतों की समुज्ज्वल परंपरा आज भारत ही नहीं, विश्व के संकटों के निवारण में महती सहायक हो सकती है। संत परंपरा ही संपूर्ण विश्व को तमाम विघ्न-कष्टों से बचाकर वास्तविक विकास के मार्ग पर अग्रसर कर सकती है।
जीवन के आध्यात्मिक विकास एवं तात्त्विक भाव उत्पन्न करने में सहायक प्रेरणाप्रद पुस्तक।
जन्म :1 जून,1938 को मुलतान (अब पाकिस्तान) में।
शिक्षा : एम.ए. हिंदी, पीएच.डी.।
कृतित्व : बारह कविता संग्रह, दस आलोचक पुस्तकों सहित पैंतालीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। ‘कहत कबीर कबीर’, ‘कबीर की चिंता’, ‘पूरा कबीर’, ‘दादू जीवन दर्शन’, ‘संत कवि दादू’, ‘संत मलूक ग्रंथावली’, ‘संत पुस्तक माला’का लेखकसंपादन।
सम्मानपुरस्कार : विभिन्न अकादमियों, साहित्यिक संस्थाओं, विश्वविद्यालयों द्वारा सम्मानित। छह पुस्तकें केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा पुरस्कृत। ‘कबीर शिखर सम्मान’, ‘मलूक रत्न पुरस्कार’ प्राप्त। रचनाएँ विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रमों में निर्धारित तथा अनेक भाषाओं में अनूदित।
विदेश यात्रा : ‘विश्व रामायण सम्मेलन’ तथा ‘कबीर चेतना यात्रा’ के दौरान मॉरीशस, हॉलैंड, इंग्लैंड, बेल्जियम, नेपाल आदि देशों की यात्रा। ‘अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन’ के संस्थापक अध्यक्ष, विश्व कबीरपंथी महासभा के अध्यक्ष, ‘अखिल भारतीय श्री दादू सेवक समाज’ के महानिदेशक, ‘दादू शिखर सम्मान समिति’ के संयोजक।