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भारतीय कला सभी को प्रभावित करती है। वह उसे प्रकट करती है जिसे शब्दों में कहा ही नहीं जा सकता। भारतीय चित्र-कला तो आकर्षक है ही, संगीत-कला और नाट्य-कला और भी अधिक आकर्षक हैं। प्राचीन भारतीय आचार्यों ने संगीत और नाट्य दोनों को ही मनोरंजन के साथ-साथ मन को शांत करनेवाला भी बताया है। इस कारण धर्म की साधना में संगीत और नाट्य दोनों का बहुत उपयोग हुआ। इससे संगीत-कला और नाट्य-कला दोनों ही बहुत चमकीं। उनमें आत्मा को परमात्मा तक पहुँचाने की शक्ति आ गई। संगीत का अर्थ है ‘गायन’ अर्थात गना, ‘वादन’ अर्थात बजाना और नृत्य अर्थात नाच का तालमेल इसी प्रकार नाट्य के भी तीन अंग हैं - श्रीर के विविध अंगों का संचालन अंगों के संचालन द्वारा भावों को प्रकट करना और अभिनय। इस तरह नृत्य संगीत का भी अंग है और नाट्य का भी|