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"इस पुस्तक के जीवंत शब्द, पूज्य गुरुदेव की साधना की परिणति के रूप में मुखरित हुए हैं, अतः वे सहजता के साथ सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् को आविर्भूत करते हैं और ज्ञान, कर्म, उपासना, इन तीनों के समन्वित रूप में पूर्णता को अभिव्याप्त भी कराते हैं। इस सृजन उपक्रम का हर अक्षर कल्याणकारी और आनंदमय तथा सौंदर्यमय है, जो धर्म , दर्शन, साधना और लोक-व्यवहार के श्रेष्ठतम और आदर्शतम रूप से जन-जन को परिचित कराने को उत्सुक है।
पूज्यवर, कर्तव्य-पथ पर मनुज के प्रस्थान को सत्य के संदर्शन से स्फूर्त कराते हैं और लोक-कल्याण से समन्वित कर, राग / द्वेष / मोह / कषाय /उद्विग्नता आदि से विरत परिमार्जित सत्य से परिचित कराते हुए बना देते हैं, उसे ग्राह्य भी करते हुए संप्रेरण चतुर्दिक समरसता का।"