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Bharat ki Rajneeti ka Uttarayan   

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Author Suryakant Bali
Features
  • ISBN : 9789353225797
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
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  • Kindle Store

More Information

  • Suryakant Bali
  • 9789353225797
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2019
  • 528
  • Hard Cover

Description

‘भारत की राजनीति का उत्तरायण’, जैसा कि पुस्तक के शीर्षक से ही स्पष्ट है, एक राजनीतिक पुस्तक है। कोई भी राजनीतिक पुस्तक राजनीतिक घटनाओं पर आधारित हो सकती है अथवा राजनीति से जुड़े व्यक्तित्वों पर आधारित हो सकती है या फिर राजनीतिक विचारधारा से, राजनीतिक विचारों से जुड़ी हो सकती है। यह पुस्तक तीसरे वर्ग में रखी जा सकती है, अर्थात् ‘उत्तरायण’ पुस्तक विचारधारा पर आधारित राजनीतिक पुस्तक है।
भारत की विचारधारा से जुड़ी कोई राजनीतिक पुस्तक हो और वह भारत के अध्यात्म, भारत के धर्म और भारत के संप्रदायों से न जुड़ी हो, भारत की अपनी निगम-आगम-कथा परंपराओं से न जुड़ी हो, भारत के अध्यात्म-अद्वैत-भक्ति, अपने इन तीन वैचारिक आंदोलनों से न जुड़ी हो, भारत के तीन विशिष्टतम महर्षियों, जो संयोगवश तीनों ही दलित महर्षि हैं, ऐसे वाल्मीकि, वेदव्यास तथा सूतजी महाराज से न जुड़ी हो, तो फिर वह भारत की विचारधारा पर आधारित पुस्तक कैसे कही जा सकती है? ‘उत्तरायण’ भारत की इसी, दस हजार सालों से विकसित अपनी, देश की अपनी विचारधारा से जुड़ी पुस्तक है, देश के अध्यात्म-धर्म-संप्रदाय से अनुप्राणित पुस्तक है। निगम, आगम, कथा इन तीनों परंपराओं से जीवन-रस प्राप्त करने वाली तथा भारत केतीन वैचारिक आंदोलनों, अध्यात्म-अद्वैत-भक्ति आंदोलनों से पोषण प्राप्त करने वाली शब्द-प्रस्तुति है, उसी से प्राप्त विचारधारा का विश्लेषण करती है।
भारत की विचारधारा पर आधारित इस पुस्तक के केंद्र में ‘हिंदुत्व’ है, जो पिछले दस हजार साल से भारत की अपनी विचारधारा है और इस विचारधारा के केंद्र में है ‘हिंदू’, जिसको लेखक ने इन शब्दों में परिभाषित किया है कि ‘हिंदू वह है, जो पुनर्जन्म मानता है’।
भारत में सभ्यताओं के बीच हुए संघर्ष को ढंग से समझने की कोशिश करनी है तो वह काम गंगा-जमनी सभ्यता जैसे ढकोसलों से परिपूर्ण शब्दावली से नहीं हो सकता। भारत को बार-बार तोड़नेवाली विधर्मी शक्तियों के विवरणों पर खडि़या पोत देने से भी काम नहीं चलनेवाला। ‘इसलाम शांति का मजहब है’ जैसी निरर्थक बतकहियों से भी कोई बात नहीं बननेवाली। भारत के सभी मुसलिम निस्संदेह भारत की ही संतानें हैं। हम इतिहास में दुर्घटित सभी इसलाम प्रवर्तित भारत-विभाजनों से मुक्त अखंड भारतवर्ष की बात कर रहे हैं। पारसीक (फारस), शकस्थान (सीस्तान), गांधार (अफगानिस्तान), सौवीर (बलोचिस्तान), सप्तसिंधु (पाकिस्तान), सिंधुदेश (सिंध), कुरुजांगल (वजीरिस्तान), उत्तरकुरु (गिलगित-बल्टिस्तान), काश्मीर (पी.ओ.के.), पूर्व बंग (बांग्लादेश) आदि सभी इसलाम प्रेरित विभाजनों से पूर्व के भारतवर्ष की बात कर रहे हैं। ऐसे भारतवर्ष के सभी मुसलिम भारतमाता की ही संतानें हैं, हिंदू दादा-परदादाओं की ही संतानें हैं, इसलामी जड़ोंवाले देशों से वे यहाँ नहीं आए हैं। इतिहास में की गई जोर-जबरदस्तियों, प्रलोभनों, उत्पीड़नों के परिणामस्वरूप यहाँ आतंक का माहौल बनाकर इसलामी व ईसाई धर्मांतरण में धकेल दिए गए हैं। ये सभी धर्मांतरित वास्तव में हिंदू ही हैं—इस, यानी इसी इतिहास के धरातल पर लिखे अमिट सत्य को स्वीकारने में, अपने पिता, दादा, परदादाओं के धर्म, शिक्षा-दीक्षा, संस्कारों व परंपराओं में फिर से मिलकर घुल-मिल जाने में ही समस्याओं के समाधान प्राप्त हो सकते हैं। शुरू की दो-एक पीढि़यों को कुछ मानसिक, वैचारिक, सामाजिक सवालों व तनावों का सामना करना पड़ सकता है। पर वहीं से समाधानों का अक्षय स्रोत भी फूटेगा। जाहिर है कि भारत का अपना जीवन-दर्शन, भारत का अपना धर्म, भारत के अपने संप्रदाय, भारत के अपने पर्व-त्योहार, भारत की अपनी सभ्यता, भारत की अपनी भाषाएँ, भारत की अपनी विचारधारा ही भारत की राजनीति के उत्तरायण की पटकथा लिखनेवाले हैं। लिखना शुरू भी कर चुके हैं।

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अनुक्रम

पूर्वकथन —Pgs. 7

संवाद —Pgs. 11

पस्पशा : भारत में सभ्यताओं के बीच हुए संघर्ष की सदियों के बाद —Pgs. 13

भारत के लिए बेसिक व आधारभूत

1. राजनीति है सर्वोपरि —Pgs. 29

2. भारत की सभ्यता के दस हजार साल —Pgs. 46

3. भारत की राष्ट्रीयता का आधार है अध्यात्म —Pgs. 61

4. भारत के अध्यात्म का आधार है, भारत का धर्म —Pgs. 71

5. भारत का धर्म : सनातन धर्म —Pgs. 86

6. भारत के संप्रदाय —Pgs. 95

केंद्र में है हिंदू

7. हिंदू के बारे में चल रहे पाखंड —Pgs. 107

8. हिंदू राजनीतिक प्राणी नहीं बन पाया, इसलिए... 114

9. भारतवर्ष के विखंडन की यातनाएँ  —Pgs. 123

10. हिंदू : परिभाषा की जरूरत —Pgs. 128

11. परिभाषा : हिंदू की परिभाषा —Pgs. 137

12. हिंदू की परिभाषा से जुड़े आयाम —Pgs. 145

13. हिंदू की परिभाषा से जुड़े कुछ और आयाम —Pgs. 153

14. हिंदू की परिभाषा से जुड़े दार्शनिक आयाम —Pgs. 162

15. हिंदू की परिभाषा से जुड़े राजनीतिक आयाम —Pgs. 171

16. हिंदू-परिभाषा से जुड़े राष्ट्रवादी आयाम —Pgs. 178

17. हिंदू-परिभाषा : भाई को आलिंगन, शत्रु की पहचान —Pgs. 185

18. यह देश किसका है? —Pgs. 192

19. जाहिर है कि भारत हिंदू राष्ट्र ही है —Pgs. 200

20. भारत हिंदू राष्ट्र है, इसलिए भारत सहिष्णु देश है —Pgs. 211

हिंदू से जुड़े महत्त्वपूर्ण पक्ष

21. भारत के तीन वैचारिक आंदोलन —Pgs. 223

22. इसलिए भारत स्वभाव से ही बहुलवादी है —Pgs. 246

23. भारत का धर्म बनाम विदेशी धर्म —Pgs. 256

24. भारत की जातियाँ —Pgs. 263

25. भारत की सभी जातियाँ हिंदू जातियाँ ही हैं —Pgs. 275

26. राष्ट्रवाद को अब जातियोग की प्रतीक्षा  —Pgs. 285

27. गुलामी की ओर ले जा सकती है धर्मनिरपेक्षता की फाँस —Pgs. 295

28. पंच परमेश्वर हैं प्रेरणास्रोत (शिव, राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर) —Pgs. 306

29. वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, वैशाली, सारनाथ : भारत की राष्ट्रीयता के आयाम —Pgs. 315

30. वाल्मीकि, वेदव्यास, सूतजी महाराज : इन तीन दलित महर्षियों का महत्त्व समझते हैं आप? —Pgs. 325

विचारधारा में विचलन के खिलाफ

31. एक अघटित को इतिहास बनाने का छल —Pgs. 337

32. भारत-विरोधी है भाषायी व धार्मिक अल्पसंख्यकवाद —Pgs. 348

33. भारत में न ब्राह्मणवाद था, न ब्राह्मण धर्म —Pgs. 356

34. मनुवादी सोच के नाम पर राजनीतिक पाखंड —Pgs. 368

35. आर्य को नस्ल बनाने का कूटनीतिक पाखंड —Pgs. 375

36. द्रविड़ को नस्ल बनाने का राजनीतिक पाखंड —Pgs. 383

37. दक्षिण में राम : सभ्यता पर विमर्श —Pgs. 392

38. नेहरू की आदिवासी नीति के फलित —Pgs. 402

39. नेहरू की काश्मीर नीति के फलित : अब क्या हो? —Pgs. 408

40. नेहरू की तिब्बत नीति के फलित —Pgs. 417

41. वाजपेयी के ‘सर्वधर्मसमभाव’ के फलित —Pgs. 421

42. लोकतंत्र बनाम मेजोरिटेरियनिज्म —Pgs. 429

43. ‘मुझे अपना धर्म चुनने का हक है’ क्या वाकई? —Pgs. 437

44. आजादी के आंदोलन की ठेकेदारी करने वाले —Pgs. 443

45. उर्दू मुसलमानों की भाषा नहीं —Pgs. 450

46. संस्कृतः भारत के व्यक्तित्व का एक नाम —Pgs. 456

कुछ अन्य विविध पक्ष-विपक्ष

47. महाशक्ति : भारत की ‘त्रयी’ साधना —Pgs. 463

48. ‘भगवा’ ही है भारत की पहचान —Pgs. 473

49. भगवा का ही विस्तार है तिरंगा —Pgs. 484

50. भारत से बेमेल है ‘धर्मग्रंथ’ की अवधारणा —Pgs. 489

51. भारत के राष्ट्रवाद की चालू किस्म की परिभाषाएँ —Pgs. 495

52. कांग्रेसमुक्त भारत होने का अर्थ-1 —Pgs. 502

53. कांग्रेसमुक्त भारत होने का अर्थ-2 —Pgs. 511

फलश्रुति

54. फलश्रुति : वयं राष्ट्रे जागृयाम : हम रहें निरंतर जागरूक  —Pgs. 517

The Author

Suryakant Bali

भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् श्री सूर्यकान्त बाली ने भारत के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ के सहायक संपादक (1987) बनने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। नवभारत के स्थानीय संपादक (1994-97) रहने के बाद वे जी न्यूज के कार्यकारी संपादक रहे। विपुल राजनीतिक लेखन के अलावा भारतीय संस्कृति पर इनका लेखन खासतौर से सराहा गया। काफी समय तक भारत के मील पत्थर (रविवार्ता, नवभारत टाइम्स) पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा, जो पर्याप्त परिवर्धनों और परिवर्तनों के साथ ‘भारतगाथा’ नामक पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुँचा। 9 नवंबर, 1943 को मुलतान (अब पाकिस्तान) में जनमे श्री बाली को हमेशा इस बात पर गर्व की अनुभूति होती है कि उनके संस्कारों का निर्माण करने में उनके अपने संस्कारशील परिवार के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज और उसके प्राचार्य प्रोफेसर शांतिनारायण का निर्णायक योगदान रहा। इसी हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. के बाद अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ लिया। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों—‘भारत की राजनीति के महाप्रश्न’ तथा ‘भारत के व्यक्तित्व की पहचान’ के अलावा श्री बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें—‘Contribution of Bhattoji Dikshit to Sanskrit Grammar (Ph.D. Thisis)’, ‘Historical and Critical Studies in the Atharvaved (Ed)’ और महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ प्रकाशित हैं। श्री बाली ने वैदिक कथारूपों को हिंदी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया—‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। विचारप्रधान पुस्तकों ‘भारत को समझने की शर्तें’ और ‘महाभारत का धर्मसंकट’ ने विमर्श का नया अध्याय प्रारंभ किया।

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