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भारत में पंचायती राज एक विश्लेषणात्मक, जानकारीपरक एवं अत्यंत महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें पंचायती राजतंत्र के सभी पहलुओं का विस्तृत विवेचन किया गया है। भारतीय लोकतंत्र में पंचायतें आज विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बाद शासन प्रणाली के चतुर्थ स्तंभ के रूप में उभरी हैं। पंचायतें भविष्य में और भी सक्षम और सुदृढ़ होंगी। भारत में विद्यमान जटिल समस्याओं का सीधा समाधान पंचायत-संस्थाओं के माध्यम से ही संभव है।
'भारत में पंचायती राज' इस विषय पर एक समग्र कृति है, जो कि नीति- निर्धारकों, प्रशासकों, पंचायत- प्रतिनिधियों और जनता के बीच संवाद का माध्यम बनेगी तथा सभी के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी।
भारतीय प्रशासनिक सेवा से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात साहित्य-रचना के माध्यम से समाज के उत्थान के कार्य हेतु समर्पित। हिंदी व अंग्रेजी में लगभग 50 पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें उनके तीन खंडों में प्रकाशित एक दर्जन उपन्यास भी सम्मिलित। भूमि-सुधारों पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विचारक।
कर्मयोग पर ‘भगवद्गीता : नाट्य रूप’ शीर्षक से गीता पर उनका भाष्य, राजधर्म को केंद्रबिंदु बनाकर उनके द्वारा लिखित ‘चित्रकूट में राम-भरत मिलाप’, भारतीयता की परिचायक कृति ‘भारतीय सोच’ तथा तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ को यथार्थ व नाट्य रूप में प्रस्तुत करनेवाली कृति ‘रामचरितमानस : नाट्य रूप’ भारतीय संस्कृति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण पड़ाव हैं।
संप्रति भारत के अग्रणी विधि प्रतिष्ठान ‘खेतान एंड कंपनी’, नई दिल्ली में प्रमुख सलाहकार।
स्थायी संपर्क सूत्र : 105, चौक बाजार, बरुआ सागर, झाँसी-284201 (उ.प्र)
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