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भारतीय अंक-प्रतीक-कोश ' (गणित ज्ञान : संख्यात शास्त्र) अपने विषय का न केवल हिंदी में, वरन् समस्त अठारह भारतीय भाषाओं में पहला कोश है । पाँच सौ पृष्ठोंवाला यह कोश प्रारूप और ज्ञान के संख्यात अनुशासन की प्रथम प्रस्तुति है । अपने में यह प्रथम प्राथमिकता और महत्त्व का विषय एवं ग्रंथ है । समस्त ज्ञान को अंक और संख्या में समझने की एक सामाजिक परंपरा रही है । ज्ञान कैसा भी और कितना भी विशाल क्यों न हो, समाज जब उसे संख्या के धरातल पर खड़ा कर देखता है, तब उसे समझने में और स्मरण रखने में सुविधा होती है । जैसे-सूर्य एक, द्वंद्व दो, काल तीन, वेद चार, तत्त्व पाँच, वेदांग छह, माताएँ सात, दिशाएँ आठ, अंक-मूल नौ, महाविद्याएँ दस, रुद्र ग्यारह, ज्योतिर्लिंग बारह, महापापोद्भव-रोग तेरह, चुंबन-प्रकार चौदह, अनर्थ पंद्रह, चंद्रकलाएँ सोलह, ओषधि-प्रकार सत्रह, पुराण अठारह, पूर्वरंग-अंग उन्नीस, उपरूपक बीस, नरक इक्कीस, आहुति-क्रम बाईस, अर्थदोष तेईस, गुण चौबीस, तत्त्व पचीस, योगविघ्न छब्बीस, नक्षत्र सताईस, राधा-नाम अठाईस, कल्प तीस, तर्पणीय देवता इकतीस, अर्थहरण बत्तीस, संचारी भाव तैंतीस, दनुपुत्र चौंतीस, रागिणी छत्तीस, भक्त अड़तीस, संस्कार चालीस, मंत्रदोष पैंतालीस, पवन उनचास, ओंकार-कला पचास, कलाएँ चौंसठ, धृतराष्ट्र-पुत्र सौ, चरणाक्षर एक सौ आठ इत्यादि । इस प्रकार की 2169 प्रविष्टियाँ इस कोश में संगृहीत हैं ।
' भारतीय अंक-प्रतीक-कोश ' के माध्यम से प्राय: समस्त भारतीय ज्ञान-परंपरा को अंक और संख्या में परंपरा-व्यवस्थित रूप में उपस्थित किया गया है । कोश का कोई भी पृष्ठ उलटिए, आपकी जिज्ञासा कौतूहल में और कौतूहल ज्ञानवर्धक आनंद में स्वत: रूपांतरित होता चला जाएगा ।
इस कोश की उपयोगिता सामान्य से विशिष्ट जन तक है । जैसे पूजा के समय पंचामृत और पंचगव्य में क्या-क्या पदार्थ हैं, इस तथ्य से आरंभ कर न्याय के 334 प्रकार तक का उल्लेख यहाँ मिलेगा । पांडुलिपि- काल में ही इसका पारायण करनेवाले पाठकों के अभिमत में यह कोश प्रत्येक प्रश्न-पिपासा के लिए उत्तर- मानसरोवर-सलिल सिद्ध होगा, जो अपने में अनुत्तर है । यह कोश प्रत्येक परिवार से पुस्तकालय तक का अलंकरण सिद्ध होगा । इस ग्रंथ को हम भारतीय जीवनधारा और संस्कृति की शोभा, शक्ति एवं संपदा के रूप में लोकार्पित करते हुए सुखद संतोष का अनुभव करते हैं ।
पटना -विश्वविद्यालय के अंतर्गत हिंदी - विभागों ( 1960 से ' 97) में प्राध्यापक, रीडर, युनिवर्सिटी प्रोफेसर तथा अध्यक्ष- इन विभिन्न पदों पर सैंतीस वर्षो के सफल एवं संतुष्ट अध्यापन के पश्चात् अवकाश- प्राप्त आचार्य निशांतकेतु (मूल नाम : चंद्र किशोर पांडेय) स्थायी रूप से अपने ' शब्दाश्रम ', बी - 970, पालम विहार, गुड़गाँव, हरियाणा 122017 (दिल्ली - गुड़गाँव सीमास्थल) में निवास करते हैं । परीक्षाओं में सदैव प्रथमस्थानीय तथा अनेक स्वर्णपदक प्राप्त आचार्य निशांतकेतु बहुपठित और बहुभाषाविद् हैं । आपने साहित्य, भाषाशास्त्र, व्याकरण, पाठालोचन, भूभाषिकी, कोश, दर्शन, योग, अध्यात्म, समाजशास्त्र और तंत्र पर अनेक ग्रंथों की रचना की है । कविता, लघुकथा, कहानी, उपन्यास, संस्मरण, ललित लेख, पुस्तक-समीक्षा, आलोचना, साहित्येतिहास इत्यादि साहित्य -विधाओं में विपुल एवं विशिष्ट लेखन के अतिरिक्त आपने प्रभूत बाल - साहित्य की रचना की है । आपने अनेक पत्रिकाओं, स्मारिकाओं, ग्रंथों और विश्वकोशों का व्यावहारिक संपादन किया है । साहित्य - साधना के अतिरिक्त अक्षर - तत्व, तांत्रिक विनियोग - विद्या, लययोग, तन्मात्रा - तत्त्व -शास्त्र, अंत : सूर्यविज्ञान, रुद्राक्ष- धारण और जपयोग एवं प्राणायाम - प्राणुशासित नवायुर्विज्ञान के विशेषज्ञ आचार्य निशांतकेतु ने इन विषयों पर बहुत कुछ मौलिक तथा सार्थक लिखा है । अब तक आपके शताधिक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं ।
संप्रति : सुलभ साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष तथा ' चक्रवाक् ' पत्रिका के संपादक ।