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हर किसी की इच्छा है कि एक बेहतर विश्व बने, जहाँ कंपनियाँ अपने हितधारकों से कुछ न छिपाते हुए अपने कामकाज के लिए प्रतिबद्धता लें और उनके कामकाज में पारदर्शिता हो। एक ऐसी वैश्विक अर्थव्यवस्था हो, जिसमें स्वतंत्र व्यपार संभव हो और सभी राष्ट्र एक दूसरे के व्यापारिक या आर्थिक हितों को नुकसान न पहुँचाते हुए अपनी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण करें।हर देश की भौगोलिक सीमाओं से परे उनकी अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक, मानसिक और नैतिक धरोहर है, जो उनके घरेलू स्तर पर होनेवाले आर्थिक, राजनैतिक और व्यापारिक मसलों को प्रभावित करती है। आज एक राष्ट्र में हलचल होती है, तो उसकी सरसराहट दूर तक सुनाई देती है। फिर वो जापान में आई सूनामी हो या यूरो जोन क्राइसिस या फिर अमेरिकी रेटिंग का डाउनग्रेड या भारत में भ्रष्टचार विरोधी आंदोलन, दुनिया भर के शेयर मार्केट इस प्रकार की घटनाओं से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। यही नहीं घरेलू स्तर पर भी जो सरकारी या संस्थागत निर्णय अथवा नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं, उनका प्रभाव विभिन्न तबके के लोगों और विभिन्न आकार और क्षेत्र के उद्योगों पर अवश्य पड़ता है। इन्हीं सब समसामयिक नीतियों और ज्वलंत मुद्दों की व्याख्या करना, विवेचना करना और उन पर अपना दृष्टिकोण अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना ही लेखिका का उद्देश्य है।सभी आयु वर्ग के पाठकों को ही नहीं, समाज और उद्योग-जगत् के लोगों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
डॉ. वंदना डांगी एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और लिबोर्ड फाइनेंस लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। उन्होंने अर्थशास्त्र में बी.ए. (ऑनर्स) तथा प्रबंध-शास्त्र में एम.बी.ए. एवं पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय के जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज सहित अनेक प्रतिष्ठित प्रबंध संस्थानों में ‘बिजनेस एनवॉयरमेंट’, ‘मैनेजीरियल इकोनॉमिक्स’ और ‘रिसर्च मैथ्डोलॉजी’ आदि विषयों में अध्यापन किया है। वह जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित ‘एस.एस. नादकर्णी रिसर्च मोनोग्राफ’ तथा बी.एस.ई. द्वारा प्रकाशित ‘प्राइमर ऑन कैपीटल मार्केट्स ऐंड मेक्रोइकोनॉमी’ नामक पुस्तकों में लेखिका रही हैं।