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‘भारतीय होने का अर्थ’ में लेखक ने अपनी सूक्ष्म और पैनी दृष्टि से भारतीयों की यथार्थ स्थिति और वैश्विक विकास में उनकी भागीदारी का परीक्षण करते हुए उनसे संबद्ध रूढ़ और मिथ्या धारणाओं तथा आम मान्यताओं का पूर्ण रूप से खंडन किया है। भारतीयों और भारत की संस्कृति का सूक्ष्म विश्लेषण करते हुए लेखक ने उन विसंगतियों और विरोधाभासों पर एक सर्वथा नवीन और चकितकारी निष्कर्ष प्रस्तुत किया है, जो शक्ति, संपदा और आध्यात्मिकता जैसे विषयों पर भारतीयों के दृष्टिकोण का चित्रण करते हैं। उदाहरणस्वरूप किस प्रकार अधिकांश भारतीय गरीबों की दुर्दशा तथा जातिप्रथा के अनौचित्य के प्रति अपनी घातक उदासीनता को संसदीय लोकतंत्र की अपनी जोरदार हिमायत के अनुकूल बना रहे हैं? किस प्रकार स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी द्वारा अपनाए गए अहिंसा के सिद्धांत का समर्थन करनेवाले लोग अधिक दहेज के लिए अपनी पत्नी-बहू को जिंदा जला रहे हैं? और क्यों भारतीयों को आध्यात्मिक तथा पारलौकिक उपलब्धि के क्षेत्र में इतनी प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है, जबकि उनका दर्शन और उनकी परंपरा भौतिक सुख को जीवन के वास्तविक लक्ष्य से परे मानती है?
इस पुस्तक में एक अरब से भी अधिक की जनसंख्यावाले भारत की आर्थिक, तकनीकी और सैन्य शक्ति का भावी परिदृश्य भी प्रस्तुत किया गया है। यह भारतीयों के लिए स्वयं को जानने-समझने तथा विदेशियों के लिए भारतीयों की यथार्थ विशेषताओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए समान रूप से उपयोगी पुस्तक है।
पवन वर्मा दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास में स्नातक होने के साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय से विधि में भी स्नातक हैं। भारतीय विदेश सेवा के सदस्य के रूप में वे मॉस्को, संयुक्त राष्ट्र संघ के भारतीय अभियान में न्यूयॉर्क, लंदन के नेहरू सेंटर में बतौर निदेशक और भारत के उच्चायुक्त के रूप में साइप्रस में अपनी सेवाएँ प्रदान कर चुके हैं। वर्तमान में भूटान में भारत के राजदूत हैं। सर्वाधिक बिक्रीवाली पुस्तकों में एक ‘द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास’ के अलावा उन्होंने ‘गालिब : द मैन, द टाइम्स’, ‘कृष्णा: द प्लेफुल डिवाइन’, ‘युधिष्ठिर एंड द्रौपदी : ए टेल ऑफ लव, पैशंस एंड द रिडल्स ऑफ एक्सिसटेंस’, ‘द बुक ऑफ कृष्णा’ एवं ‘मैक्सिमाइज योर लाइफ’ जैसी पुस्तकें भी लिखी हैं।