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आधुनिक भारत को जन्म देनेवाले रेल नेटवर्क की अद्भुत कहानी
रेल ने भारत को आधुनिकता प्रदान की तथा इसके विस्तृत नेटवर्क ने इस उपमहाद्वीप के एक कोने से दूसरे कोने को आपस में मिलाया और पहले की अपेक्षा परिवहन, संचार एवं व्यापार को भी सुगम बनाया। यहाँ तक कि भारत को एक राष्ट्र का रूप देने में रेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसने यहाँ के विषम क्षेत्रों एवं लोगों को ऐतिहासिक और भौगोलिक रूप से न केवल जोड़ा, बल्कि भारतीयों के जीवन एवं विचार को भी बदला, जिससे एक राष्ट्रीय पहचान बननी संभव हो सकी।
पुरानी ऐतिहासिक घटनाओं को लघुकथाओं के माध्यम से प्रस्तुत करती, श्रमपूर्वक लिखी गई यह पुस्तक रेल-यात्राओं के रोमांच के साथ अपनी विशालकाय व्यापारिक शक्ति का भी परिचय कराती है। सन् 1890 यानी प्रथम योजना बनने के समय से भारत की स्वतंत्रता तक के रेल के विकास को विवेक देवराय और इनके सह-लेखकों ने प्रस्तुत किया है। इनके प्रयोगों से यह भी स्पष्ट होता है कि भारत में रेल नेटवर्क किस प्रकार हुआ और किस प्रकार यह ऐसी जीवन-रेखा बनी, जो संपूर्ण राष्ट्र को आज भी एक धागे में पिरोती है।
भारतीय रेल का इतिहास, उसकी परंपरा और उसके वर्तमान व भविष्य पर एक विहंगम दृष्टि डालती पठनीय पुस्तक।
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अनुक्रम
परिचय — 7
भूमिका — 21
1. सन् 1830 : एक शुरुआत — 35
2. सन् 1840 : संभाषण, चर्चा और कार्य आरंभ का इंतजार — 44
3. सन् 1850 से 1860 तक विस्तार — 58
4. सन् 1870 और इसके उपरांत : परिवर्तन एवं समायोजन — 87
5. 20वीं सदी : रेलवे बोर्ड और आगे — 150
संदर्भ — 192
विवेक देवराय प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं और वर्तमान में प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल के अध्यक्ष तथा भारत सरकार के नीति आयोग के सदस्य हैं। विगत लगभग चालीस वर्षों में उन्होंने देश के शीर्ष, आर्थिक, राजनीतिक व वित्तीय संस्थानों में कार्य किया और अपनी दक्षता से उनकी विकासगाथा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अनेक पुस्तकों का लेखन/संपादन किया है। उनके शोधपत्र तथा लोकप्रिय आलेख अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। वे अनेक समाचार-पत्रों के सलाहकार संपादक भी हैं।