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Bharatiya Rajsatta : Kitni Samvaidhanik   

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Author Ram Lochan Singh
Features
  • ISBN : 9789386054746
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : First
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ram Lochan Singh
  • 9789386054746
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • First
  • 2018
  • 248
  • Hard Cover

Description

यह पुस्तक परिश्रमपूर्वक इकट्ठी की गई शोध सामग्रियों के वैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर लिखी गई एक ऐसी कृति है, जो यह दरशाती है कि स्वतंत्र भारत के संविधान की ‘प्रस्तावना’, ‘मौलिक अधिकारों’ और ‘राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों’ में प्रदत अवधारणाओं और भारतीय राजसत्ता के बीच जो विरोधाभाषी प्रवृत्ति आज पैदा हो गई है, उसका विकास किस तरह से क्रमिक गति से होता गया है। एक समाजवादी और लोक कल्याणकारी भारतीय गणतंत्र की जिस अवधारणा को स्वावलंबी आर्थिक विकास, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की आर्थिक इकाइयों को सर्वोपरि महत्त्व के स्थान पर रखकर ‘समाजवादी ढाँचे के समाज’ के निर्माण के लिए चलाई जा रही आर्थिक-नीति में किस तरह के सैद्धांतिक भटकाव क्रमिक गति से आते गए कि उन्होंने इजारेदारियों को आगे बढ़ा दिया, सामंतवादी उत्पादन प्रणाली के अवशेषों को संपूर्णता में समाप्त करने में असपफल हो गए और सबसे बढ़कर साम्राज्यवादी वित्तीय पूँजी के साथ भारतीय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के संबंधों को इस हद तक मजबूती प्रदान कर दी कि देश क्रमिक गति से आर्थिक तौर पर संकटग्रस्त  होता चला गया। खास कर राजीव गांधी के शासन काल में नव-उदारवादी नीतियों की तरफ हुए अत्यधिक झुकाव के कारण भारत गहरे आर्थिक संकट में फँस गया। जरूरत थी पूर्व की कमजोरियों और गलतियों को ठीक करने की मगर नरसिम्हा राव सरकार ने इसके बदले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के सामने आत्मसमर्पण की नीति को अख्तियार कर पूर्व की सर्वमान्य स्वावलंबी विकास नीति के ठीक विपरीत नव-उदारवादी आर्थिक विकास नीति को स्वीकार करके विकास प्रक्रिया को एक विपरीत दिशा में मोड़ दिया। इसके परिणामस्वरूप जिस आर्थिक आधार का निर्माण भारत में हो रहा है वह वर्तमान संविधान की आत्मा के ठीक उल्टा है। अब तो संविधान को ही बदल देने की माँग बड़ी पूँजी के तावेदार राजनीतिक दल करने लगे हैं, जो भारत को न तो समाजवादी-लोक कल्याणकारी राज्य रहने देगा न अर्थव्यवस्था पर सरकार का नियंत्राण। इससे राज सत्ता का स्वरूप ही बदल दिए जाने का खतरा है।

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अनुक्रम

प्राक्कथन—7

1. भूमिका—11

2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना की मूल भावना—30

3. भारतीय संविधान की मूल भावना और मौलिक अधिकार—49

4. भारतीय संविधान की मूल भावना और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत—71

5. संविधान और नेहरूवादी वैचारिकता की अनुक्रिया—86

6. संविधान की मूल दृष्टि और कांग्रेस की वैचारिकता—106

7. इजारेदारियों का विकास—129

8. दोषपूर्ण विकास का दुष्परिणाम—161

9. विकास की भ्रमित दिशा रोकने में असफलता—184

10. भटकाव का आर्थिक-राजनीतिक परिणाम—207

11. उपसंहार—227

Bibliography—235

The Author

Ram Lochan Singh

जन्म : जनवरी, 1942।
शिक्षा : बी.ए. ऑनर्स (राजनीति विज्ञान) बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर। एम.ए. (राजनीति विज्ञान) पटना विश्वविद्यालय, पटना।
प्रकाशन : The Real Culprit (नक्षत्र युद्ध से संबंधित)और ‘अंतरिक्ष में भारत’। विभिन्न समसामयिक विषयों पर दर्जनों लेख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
अनुभव : पी.सी.जोशी (भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रख्यात नेता, प्रख्यात मेरठ षड्यंत्र केस के एक अभियुक्त और गांधी-जोशी पत्राचार के लिए राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान चर्चित) की अध्यक्षता में गठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चलाए जा रहे प्रोजेक्ट में उनके सहयोगी के रूप में वर्षों कार्यरत।
मैत्री-शांति पत्रिका, (बी.एम.दास रोड, पटना से प्रकाशित) के संपादक मंडल के सदस्य के रूप में वर्षों का अनुभव।
 विदेश भ्रमणः रूस (मॉस्को), यूक्रेन, वियतनाम आदि में जानेवाले एकाडेमिक शिष्टमंडल के एक सदस्य के रूप में भ्रमण तथा सिंगापुर, ताशकंद, आदि की यात्रा।

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