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भारतीय सेना ने राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता किसी भी अन्य लोकतांत्रिक विकासशील देश की अपेक्षा बेहतर तरीके से बनाए रखी है। परंतु इन सफलताओं का श्रेय उसके उच्चतर रक्षा प्रबंधन को कम, सामरिक आयोजना एवं उसके निष्पादन के लिए जिम्मेदार सैन्य कर्मियों को अधिक जाता है। लेकिन कई बार भारत भारी कठिनाइयों को झेलने के बाद मिली सामरिक उपलब्धियों को दीर्घकालिक व सामरिक सफलताओं में बदलने में नाकाम रहा है।
ऐसा क्यों होता है? हम सैन्य-संघर्ष से पहले और उसके दौरान राजनीतिक निर्णय किस तरह लेते हैं? रक्षा आयोजना और प्रबंधन में सुधार के लिए क्या किया जाना चाहिए? इन सब प्रश्नों के समाधान के साथ-साथ नए मार्ग प्रशस्त करनेवाली इस पुस्तक में भारत के सैन्य-संघर्षों के कुछ ताजा उदाहरण प्रस्तुत किए गए। इनमें ‘ऑपरेशन पवन’, जिसके दु:खद परिणाम हुए थे, का विवरण आँखें खोल देनेवाला है, और साथ ही मालदीव में किया गया ‘ऑपरेशन कैक्टस’ एक त्वरित कमांडो काररवाई भी दी गई है, जिसमें भारतीय सेना ने चौबीस घंटे के भीतर तख्तापलट का प्रयास विफल कर दिया था।
पूर्व भारतीय थल सेनाध्यक्ष जनरल वेदप्रकाश मलिक के व्यावहारिक अनुभवों से नि:सृत ये प्रामाणिक, वस्तुनिष्ठ वृत्तांत और आकलन हमें निर्णय-प्रक्रिया की आंतरिक जानकारी देते हैं। इस कृति में भारत के उच्चतर रक्षा प्रबंधन के भावी परिप्रेक्ष्य का आकलन भी दिया गया है। ये विवरण समसामयिक हैं और हर उस व्यक्ति को मुग्ध कर देंगे, जिसका भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से कुछ भी सरोकार है।
जनरल वी.पी. मलिक 1 अक्तूबर, 1997 से 30 सितंबर, 2000 तक भारतीय थल सेनाध्यक्ष रहे। साथ ही दो वर्ष तक चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष भी रहे।
उपमहानिदेशक, सैन्य-संचालन के रूप में उन्होंने चीन के साथ भारतीय सीमा के प्रबंधन, श्रीलंका में ऑपरेशन पवन और मालदीव में ऑपरेशन कैक्टस का सफल संचालन किया। बाद में, सघन विद्रोह-रोधी काररवाइयों में उन्होंने पूर्वोत्तर भारत और जम्मू व कश्मीर में एक डिवीजन और पंजाब में एक कोर की कमान सँभाली। सन् 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ रोकने के लिए थलसेनाध्यक्ष एवं चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष के रूप में ‘ऑपरेशन विजय’ के कार्यान्वयन की योजना बनाई तथा समन्वयन और निरीक्षण कार्य किया।
जनरल मलिक सेवानिवृत्ति के बाद दो बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य रहे। इसके अलावा सैन्य कूटनीतिक अभियानों पर तथा सिविल व सैन्य कूटनीतिक (राजनीतिक) मिशन पर उन्होंने कई यात्राएँ की हैं।