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स्वतंत्रता-प्राप्ति के छठे दशक में भी आज भारत विश्व के अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को लेकर चौराहे पर खड़ा है। विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं में एक होने के कारण भारत को वैश्विक मंच पर एक विशेष सम्मान प्राप्त है, जिसकी कुछ गिने-चुने देशों द्वारा ही बराबरी की जा सकती है।
यह पुस्तक भारतीय विदेश नीति की बहुआयामी दृष्टि को सामान्य जन तक पहुँचाने का एक प्रयास है। ऐसे समय में जब भारत एक सुपर पावर के रूप में उभर रहा है—लगभग चीन के समकक्ष, लोग भारत की सामरिक, आर्थिक, कूटनीति तथा मुख्य रूप से विदेश नीति के बारे में जानने के उत्सुक हैं।
इस पुस्तक में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के संबंध; रूस, चीन और भारत को मिलाकर बननेवाले सामरिक त्रिकोण के विचार, भारत का परमाणु सिद्धांत तथा उभरनेवाले नागरिक सैन्य संबंधों पर प्रभाव, प्रक्षेपास्त्र रक्षा प्रणाली पर भारत की स्थिति, भारत का ईरान और इजराइल के साथ संबंध तथा ऊर्जा व सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की तलाश आदि विषयों पर व्यापक प्रकाश डाला गया है।
भारत की विदेश तथा सुरक्षा नीति को गहराई से जानने-समझने में सहायक एक पठनीय पुस्तक।
डॉ. हर्ष वी. पंत लंदन के किंग्स कॉलेज में पढ़ाते हैं और वर्तमान में आई.आई.एम.बी. के विजिटिंग प्रोफेसर हैं। उन्होंने नॉट्रेडेम यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद जनवरी 2006 में लंदन के किंग्स कॉलेज के रक्षा अध्ययन विभाग में काम करना प्रारंभ किया। वे किंग्स कॉलेज में विज्ञान एवं सुरक्षा केंद्र में भी एसोसिएट हैं। प्रोफेसर पंत का वर्तमान शोध परमाणु प्रसार तथा एशिया-प्रशांत सुरक्षा के मामलों पर केंद्रित है।
सन् 2009 में रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान ने अपने 44वें स्थापना दिवस पर ‘के. सुब्रह्मण्यम अवार्ड फॉर एक्सीलेंस इन रिसर्च ऑन स्ट्रेटेजिक एंड सिक्योरिटी इश्यूज’ प्रदान किया था। प्रोफेसर पंत को यह पुरस्कार सामरिक अध्ययन के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिया गया था।