₹750
हर लहर से पनपती
बनती-बिगड़ती परछाइयाँ
बहती हुई खुशियाँ
या फिर सिमटी हुई तनहाइयाँ
कभी लम्हों से झाँकते वो
हँसी के हसीं झरोखे
कभी खुद से ही छुपाते
खुद होंठों से आँसू रोके
कभी दिलरुबा का हाथ पकड़ा
तो कभी माँ की उँगली थामी
कभी दोस्तों से वो झगड़ा
तो कभी चुपके से भरी हामी
कभी सवाल बने समंदर
तो कभी जवाब हुआ आसमान
कभी दिल गया भँवर में
तो कभी चूर हुआ अभिमान
कभी सपने थे व़फा के
तो कभी ज़फा से थे काँटे
कभी कमज़र्फ हुई धड़कन
तो कभी सबकुछ ही अपना बाँटे
कभी बिन माँगे मिला सब
तो कभी माँग के भी झोली खाली
कभी भगवान् ही था सबकुछ
तो कभी आस्था को दी गाली
कभी सबकुछ था पास खुद के
पर दूसरों पर नज़र थी
कभी सबकुछ ही था खोया
फिर भी नींद बे़खबर थी
कभी ख्वाब ही थे दुनिया
तो कभी टूटे थे सारे सपने
कभी अपने बने पराये
तो कभी पराये बने थे अपने
धड़कता हुआ कोई दिल था
या फिर सोया हुआ ज़मीर
फाके था रोज ही का
या था बिगड़ा हुआ अमीर
आँखें पढ़ी थीं सबकी
और पढ़े थे सभी के चेहरे
कभी किनारे पे खड़े वो
कभी पाँव धँसे थे गहरे
हज़ारों को उसने देखा
ठहरते और गुज़रते
कभी मर-मर के जीते देखा
कभी जी-जी के देखा मरते
हर इनसान के कदमों के
गहरे या हलके निशान
हर निशान में महकती
किसी श़ख्स की पहचान
कभी ढलकते आँसू
तो कभी इश़्क की रवानी
कभी मासूमियत के लम्हे
तो कभी तबीयत वो रूहानी
कहीं नाराज़गी किसी से
तो कभी यादें वो सुहानी
बचपन था किसी का
था बुढ़ापा या थी जवानी
न मिटेगी कभी भी
किसी पल की भी निशानी
सहेजी है उन सभी की
भीगी रेत ने कहानी!
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अनुक्रम | क़रीब —Pgs. 145 |
भूमिका : श्री लालकृष्ण आडवाणी —Pgs. 7 | इजाज़त —Pgs. 147 |
कविता : श्री हरिवंशराय बच्चन —Pgs. 9 | फ़ना —Pgs. 149 |
माँ —Pgs. 13 | मेरी पहचान —Pgs. 151 |
शपथ —Pgs. 21 | मैं फिर भी मुसकराता हूँ —Pgs. 153 |
अवसान —Pgs. 22 | दिल मेरा करता है —Pgs. 155 |
तुम कौन हो ? —Pgs. 24 | मक़सद —Pgs. 157 |
अधिकार —Pgs. 27 | इम्तिहान —Pgs. 159 |
सत्य —Pgs. 29 | एक बार फिर से —Pgs. 161 |
है ये कैसा विश्वास —Pgs. 31 | फ़लसफ़ा —Pgs. 163 |
जीवन सिंधु —Pgs. 33 | कोंपल —Pgs. 165 |
झंझावात —Pgs. 35 | कुछ तो बात होगी —Pgs. 167 |
प्रश्न —Pgs. 37 | ग़ुर्बत —Pgs. 169 |
अभिलाषा —Pgs. 39 | हर सहर —Pgs. 171 |
मूल्य —Pgs. 41 | हिसाब —Pgs. 173 |
अनुभूति —Pgs. 45 | दिल्लगी —Pgs. 175 |
एक और पत्ता टूटा है —Pgs. 46 | अब तो आ जाओ तुम —Pgs. 177 |
नियति —Pgs. 48 | इशारा —Pgs. 179 |
मिथ्या —Pgs. 51 | किरदार —Pgs. 181 |
बारिश —Pgs. 55 | जुदाई —Pgs. 183 |
माँ कहती है —Pgs. 56 | इश्क़िया —Pgs. 185 |
आओ अँधेरे मिटाएँ —Pgs. 59 | तो ग़ज़ल होती है —Pgs. 187 |
दीया मेरा जलता रहा —Pgs. 63 | फ़ासले —Pgs. 189 |
गुनाह —Pgs. 64 | क़िस्मत —Pgs. 191 |
इंद्रधनुष —Pgs. 67 | ज़िंदगी की बात थी —Pgs. 193 |
बात —Pgs. 69 | तेरे-मेरे दरमियाँ —Pgs. 195 |
प्रभु “कर” लेते हैं —Pgs. 71 | किनारा —Pgs. 197 |
नित्य —Pgs. 74 | अब —Pgs. 199 |
मैं औरत हूँ —Pgs. 76 | तुझे प्यार किया —Pgs. 201 |
नया वर्ष —Pgs. 81 | ख़्वाहिश —Pgs. 203 |
तारा —Pgs. 83 | सियासत —Pgs. 205 |
हथेली —Pgs. 87 | इरादा —Pgs. 207 |
महक —Pgs. 89 | अहसान —Pgs. 209 |
वो —Pgs. 93 | तू और मैं —Pgs. 211 |
मेरी किताब के पन्ने —Pgs. 95 | नसीब —Pgs. 213 |
फिर भी... 99 | इशारा —Pgs. 215 |
एक दिल ही है —Pgs. 101 | टूटा तारा —Pgs. 217 |
ख़याल —Pgs. 105 | सौग़ात —Pgs. 219 |
हम सब की ज़िंदगी —Pgs. 106 | ममता —Pgs. 221 |
सीख —Pgs. 108 | चुपके से —Pgs. 223 |
तलाश —Pgs. 110 | जवाब —Pgs. 225 |
यादें... —Pgs. 113 | साँसों का साज़ —Pgs. 227 |
मेरे मरने के बाद —Pgs. 115 | बहाना —Pgs. 229 |
मंज़र —Pgs. 116 | अंदाज़ —Pgs. 231 |
सर्दियों की बारिश —Pgs. 119 | गुलज़ार —Pgs. 233 |
तेरे बिन —Pgs. 121 | तू —Pgs. 235 |
सोचता हूँ —Pgs. 122 | क़रार —Pgs. 237 |
हसरतें —Pgs. 124 | सबके लिए —Pgs. 239 |
अधूरी बात —Pgs. 126 | मैंने ख़ुशी पाई है —Pgs. 241 |
उम्मीद —Pgs. 129 | हालात —Pgs. 243 |
मुसाफ़िर —Pgs. 131 | तुझे कैसे बताऊँ मैं? —Pgs. 245 |
एक सूना अहसास —Pgs. 132 | इश्क़ —Pgs. 247 |
चेतना —Pgs. 134 | यक़ीं —Pgs. 249 |
नई दुनिया —Pgs. 137 | अरमान —Pgs. 251 |
धड़कन —Pgs. 139 | तुम —Pgs. 252 |
मेरे मौला —Pgs. 141 | Anto eatione stotatia apis |
उनसे कह दो —Pgs. 143 |
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवि शर्मा आई.आई.टी. रुड़की के स्नातक हैं। प्रदेश स्तर के खिलाड़ी रह चुके रवि, बहुराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय कंपनियों में 14 से अधिक वर्षों तक सी.ई.ओ. के पद पर काम कर चुके हैं। वे एक लाइफ कोच, मोटिवेशनल स्पीकर, कवि, टेलीविजन उद्घोषक एवं अभिनेता, मॉडल और फोटोग्राफर भी हैं।
रवि शर्मा ने 50 वर्ष की आयु में सबकुछ छोड़कर अपने आपको सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया। उनका मानना है कि संसार में सारी समस्याओं की जड़ समाज में अच्छाई का कम होना है और इसके समाधान के लिए उन्होंने अपनी संस्था ‘प्रमा ज्योति फाउंडेशन’ के माध्यम से ‘Spreading Goodness’, अर्थात् ‘भलाई का विस्तार’ नाम की अंतरराष्ट्रीय पहल प्रारंभ की है।
उत्तर प्रदेश के गाँव और कस्बों की पृष्ठभूमि में पले-बढ़े रवि की
स्कूल-कॉलेज के दिनों से ही हिंदी साहित्य में रुचि रही है और ये कविताएँ एवं कहानियाँ लिखते रहे हैं। तीन साल पहले ‘मूनलाइट व्हिस्पर्स’ नाम से अपने गीतों की सी.डी. निकालने के बाद ‘भीगी रेत’ उनका पहला कविता-संग्रह है।