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भूख-मुक्त विश्व का सपना—स्वामीनाथन प्रस्तुत पुस्तक में प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन ने जून 1992 में रियो डी जैनेइरो में हुए पर्यावरण व विकास के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बाद की प्रगति की समीक्षा की है। साथ ही उन्होंने जोहांसबर्ग में तुरंत की जाने लायक काररवाई के लिए बहुत उपयोगी सुझाव भी दिए हैं। भूख गरीबी का चरम स्वरूप है। संसार में इस समय एक अरब बच्चे व स्त्रा्-पुरुष कुपोषण के शिकार हैं। यह पुस्तक भूख को अतीत की एक कहानी बनाने के व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करती है। चूँकि भारत में कुपोषण की समस्या सर्वाधिक है, इसलिए इसमें लेखक ने अपने देश में कृषि-भूमि, जल, मौसम-प्रबंधन आदि पर विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने हमारी धरती को वर्तमान व आनेवाली पीढ़ियों के लिए एक खुशहाल व सुखी आवास बनाने के व्यावहारिक-वैज्ञानिक सुझाव प्रस्तुत किए हैं, जिन पर अमल करने में मानवता का कल्याण निहित है। बेरोजगार युवाओं को ऐसे प्रयास शुरू करने का आत्मविश्वास और कौशल पाने में मदद करना, जो डिजिटल, जेनेटिक, लिंग और अन्य विभाजनों को पाटने में मदद कर सकें। पारंपरिक और नई प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के लिए युवाओं को सक्षम बनाना जैसे अनेक कार्यक्रम और सुझाव इस पुस्तक में समाहित हैं, जिनको अपनाकर संसार को सक्षम, खुशहाल और भूख-मुक्त बनाया जा सकता है।
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अनुक्रम
1. स्थायी खाद्य और जल सुरक्षा —Pgs. 15
2. पर्यावरण और नागरिक —Pgs. 52
3. मानसून और जल संसाधनों के प्रबंधन में नए प्रयोग —Pgs. 60
4. समेकित जीन प्रबंधन में भागीदारी —Pgs. 88
5. खाद्य सुरक्षा और दीर्घकालिक विकास —Pgs. 103
6. खाद्य असुरक्षा और गरीबी उन्मूलन के समुदाय-प्रेरित दृष्टिकोण —Pgs. 118
7. तीसरी सहस्राब्दी में पोषण —Pgs. 152
8. भूख और मानव सुरक्षा —Pgs. 171
9. प्यासी धरती और जन-काररवाई —Pgs. 189
10. केवल कल के वादे नहीं, आज से शुरू करना है काम —Pgs. 195
7 अगस्त, 1925 को कुंभकोणम (तमिलनाडु) में जनमे प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन ने एर्नाकुलम के महाराजा कॉलेज से जीव विज्ञान में बी.एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। स्वामीनाथन महात्मा गांधी के आदर्शों से बहुत प्रभावित हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के समय अन्न की भयानक कमी से त्राहि-त्राहि मची तो स्वामीनाथन का हृदय पीड़ा से भर गया। इसके लिए उन्होंने विज्ञान का सहारा लेने का मन बनाया और कृषि विज्ञान में बी.एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में आकर उच्च अध्ययन आरंभ किया और 1949 में कोशिका आनुवंशिकी में विशेष योग्यता के साथ स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1952 में उन्होंने कैंब्रिज से डॉक्टरेट किया। उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए उन्हें अनेक मान-सम्मान व पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है। इनमें ‘विश्व अन्न पुरस्कार’, सामुदायिक नेतृत्व के लिए ‘रमन मैगसेसे पुरस्कार’ व ‘इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार’ प्रमुख हैं।