Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Bhrashtachaar Ka Kadva Sach   

₹300

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Shanta Kumar
Features
  • ISBN : 9789350480595
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Shanta Kumar
  • 9789350480595
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2015
  • 208
  • Hard Cover
  • 300 Grams

Description

देश में बहुत सी स्वैच्छिक संस्थाएँ भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठा रही हैं, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए एक प्रबल जनमत खड़ा करने की आवश्यकता है। किसी भी स्तर पर रत्ती भर भी भ्रष्टाचार सहन न करने की एक कठोर प्रवृत्ति की आवश्यकता है, तभी हमारे समाज से भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता है।
आज की सारी व्यवस्था राजनैतिक है। शिखर पर बैठे राजनेताओं के जीवन का अवमूल्यन हुआ है। धीरे-धीरे सबकुछ व्यवसाय और धंधा बनने लग पड़ा। दुर्भाग्य तो यह है कि धर्म भी धंधा बन रहा है। राजनीति का व्यवसायीकरण ही नहीं अपितु अपराधीकरण हो रहा है। राजनीति प्रधान व्यवस्था में अवमूल्यन और भ्रष्टाचार का यह प्रदूषण ऊपर से नीचे तक फैलता जा रहा है। सेवा और कल्याण की सभी योजनाएँ भ्रष्टाचार में ध्वस्त होती जा रही हैं।
एक विचारक ने कहा है कि कोई भी देश बुरे लोगों की बुराई के कारण नष्ट नहीं होता, अपितु अच्छे लोगों की तटस्थता के कारण नष्ट होता है। आज भी भारत में बुरे लोग कम संख्या में हैं, पर वे सक्रिय हैं, शैतान हैं और संगठित हैं। अच्छे लोग संख्या में अधिक हैं, पर वे बिलकुल निष्क्रिय हैं, असंगठित हैं और चुपचाप तमाशा देखने वाले हैं। बहुत कम संख्या में ऐसे लोग हैं, जो बुराई के सामने सीना तानकर उसे समाप्त करने में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।
देश इस गलती को फिर न दुहराए। गरीबी के कलंक को मिटाने के लिए सरकार, समाज, मंदिर सब जुट जाएँ। यही भगवान् की सच्ची पूजा है। नहीं तो मंदिरों की घंटियाँ बजती रहेंगी, आरती भी होती रहेगी, पर भ्रष्टाचार से देश और भी खोखला हो जाएगा तथा गरीबी से निकली आतंक व नक्सलवाद की लपटें देश को झुलसाती रहेंगी।

______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रमणिका

मेरी बात —Pgs. 5

भ्रष्टाचार का कड़वा सच

1. ‘वह’ अकेला नहीं था —Pgs. 13

2. हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए —Pgs. 18

3. गरीबी व आतंक का जनक भ्रष्टाचार —Pgs. 21

4. भ्रष्टाचार बढ़ाती सरकार —Pgs. 24

5. अन्ना हजारे : भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष-यात्रा —Pgs. 27

6. राजनीति का अध्यात्मीकरण : आज की आवश्यकता —Pgs. 31

7. लोकपाल कानून भ्रष्टाचार रोक सकता है —Pgs. 34

8. सब भ्रष्टाचारी नहीं, कुछ तो बचे हैं —Pgs. 37

9. आजादी की दूसरी लड़ाई की यह चिनगारी बुझेगी नहीं —Pgs. 41

10. जनता अब भ्रष्टाचार नहीं सहेगी —Pgs. 45

किस्सा काले धन का  

11. काला धन कभी वापिस नहीं आएगा —Pgs. 51

12. देश का धन देश में लाएँ —Pgs. 56

13. समस्त विश्व चिंतित है कालेधन के जाल से —Pgs. 60

14. कितनी है यह लूट? —Pgs. 64

15. देश का धन कैसे वापिस लाएँ —Pgs. 68

खाद्यान्न वितरण का गड़बड़झाला  

16. खाद्य मंत्रालय अब शर्मसार,तब गौरवान्वित —Pgs. 75

17. असंवेदनशील सरकार गरीबों को अनाज नहीं दे सकती —Pgs. 79

18. क्या करेगी खाद्य सुरक्षा, अगर दुरुस्त नहीं है वितरण व्यवस्था —Pgs. 81

गरीबी एक अभिशाप  

19. टैक्स चोरी रोकने से सब्सिडी का घाटा पूरा हो सकता है —Pgs. 87

20. गरीबों की सही गणना भी नहीं कर पा रही सरकार —Pgs. 90

21. गरीबी हटाइए, नक्सलवाद मिट जाएगा —Pgs. 94

22. नक्सलवाद विरोधी अभियान अधूरा है —Pgs. 97

23. तटस्थ भी अपराधी है —Pgs. 102

24. गरीब की सेवा ही भगवान् की सच्ची पूजा है —Pgs. 105

25. और अब राहुल गांधी दूर करेंगे गरीबी!  —Pgs. 110

26. गरीब देश के करोड़पति नेता —Pgs. 114

27. कृषि को प्राथमिकता चीन के विकास का रहस्य —Pgs. 117

कुछ और ज्वलंत मुद्दे  

28. नन्ही कलियों को मुरझाने से बचाओ —Pgs. 123

29. गांधी-अंत्योदय और यह विषमता —Pgs. 127

30. दर्द की काली रात लंबी होती है —Pgs. 130

31. जरा तू बोल तो, सारी धरा हम फूँक देंगे —Pgs. 133

32. खुदरा बाजार में विदेशी निवेश तर्कसंगत नहीं —Pgs. 138

33. 6 दिसंबर आक्रोश का परिणाम —Pgs. 141

34. कल्पनाशील नेता : भैरों सिंह शेखावत —Pgs. 146

35. जनगणना में जाति एक भयंकर भूल —Pgs. 150

36. 26 जून : इतिहास का काला दिन —Pgs. 153

37. एक आदर्श नेता : गंगा सिंह जम्वाल —Pgs. 158

38. सुरक्षा व सम्मान दाँव पर —Pgs. 161

39. बहुत याद आते हैं भगतसिंह —Pgs. 165

40. संवैधानिक संस्थाओं का अवमूल्यन —Pgs. 167

41. राष्ट्रसंघ : विश्व शांति की दिशा में महान् उपलब्धि  —Pgs. 171

42. महँगाई की मार और मुद्रास्फीति  —Pgs. 175

43. सांसद निधि का एक और सच —Pgs. 179

44. शपथ लेना तो सरल है, पर निभाना बहुत ही कठिन है —Pgs. 182

और अब न्यायपालिका भी

45. समाज को विकृति नहीं, संस्कृति चाहिए —Pgs. 187

46. बचत की खोखली बातें —Pgs. 190

47. न्यायपालिका असहाय क्यों? —Pgs. 193

48. न्याय में विलंब भी एक अन्याय है —Pgs. 196

49. न्यायपालिका की गरिमा के लिए दिनाकरन इस्तीफा दें —Pgs. 199

50. एक साक्षात्कार : जीवन के पचहत्तर वर्ष पूरे होने पर —Pgs. 203

The Author

Shanta Kumar

प्रबुद्ध लेखक, विचारवान राष्ट्रीय नेता व हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री शान्ता कुमार का जन्म हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के गाँव गढ़जमूला में 12 सितंबर, 1934 को हुआ था। उनका जीवन आरंभ से ही काफी संघर्षपूर्ण रहा। गाँव में परिवार की आर्थिक कठिनाइयाँ उच्च शिक्षा पाने में बाधक बनीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आकर मात्र 17 वर्ष की आयु में प्रचारक बन गए। तत्पश्चात् प्रभाकर व अध्यापक प्रशिक्षण प्राप्त किया।
दिल्ली में अध्यापन-कार्य के साथ-साथ बी.ए., एल-एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण कीं। तत्पश्चात् दो वर्ष तक पंजाब में संघ के प्रचारक रहे। फिर पालमपुर में वकालत की। 1964 में अमृतसर में जनमी संतोष कुमारी शैलजा से विवाह हुआ, जो महिला साहित्यकारों में प्रमुख हैं। 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में ‘जम्मू-कश्मीर बचाओ’ आंदोलन में कूद पड़े। इसमें उन्हें आठ मास हिसार जेल में रहना पड़ा।
शान्ता कुमार ने राजनीतिक के क्षेत्र में शुरुआत अपने गाँव में पंच के रूप में की। उसके बाद पंचायत समिति के सदस्य, जिला परिषद् काँगड़ा के उपाध्यक्ष एवं अध्यक्ष, फिर विधायक, दो बार मुख्यमंत्री, फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री तक पहुँचे।
शान्ता कुमार में देश-प्रदेश के अन्य राजनेताओं से हटकर कुछ विशेष बात है। आज भी प्रदेशवासी उन्हें ‘अंत्योदय पुरुष’ और ‘पानी वाले मुख्यमंत्री’ के रूप में जानते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें— मृगतृष्णा, मन के मीत, कैदी, लाजो, वृंदा (उपन्यास), ज्योतिर्मयी (कहानी संग्रह), मैं विवश बंदी (कविता-संग्रह), हिमालय पर लाल छाया (भारत-चीन युद्ध), धरती है बलिदान की (क्रांतिकारी इतिहास), दीवार के उस पार (जेल-संस्मरण), राजनीति की शतरंज (राजनीति के अनुभव), बदलता युग-बदलते चिंतन (वैचारिक साहित्य), विश्वविजेता विवेकानंद (जीवनी), क्रांति अभी अधूरी है (निबंध), भ्रष्टाचार का कड़वा सच (लेख), शान्ता कुमार : समग्र साहित्य (तीन खंड) तथा कर्तव्य (अनुवाद)।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW