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भ्रष्टाचार का अचार—राजेश कुमारआज रंग-मंच को लेकर कम उत्साह है, क्योंकि इनका मंचन व्ययसाध्य है और टिकट खरीदकर नाटक देखने का स्वभाव प्रायः लोगों का नहीं है। ऐसी स्थिति में नुक्कड़ नाटक समाज को आईना दिखाने का सबसे सशक्त माध्यम हैं। इनके माध्यम से अपनी बात लोगों तक पहुँचाना आसान है।
प्रस्तुत पुस्तक में सरकार की मनमानी, शोषण, बेगार, असमानता, भ्रष्ट नीतियों के विरुद्ध आक्रोश व्यक्त कर चेतना और जागरूकता लानेवाले नुक्कड़ नाटक संकलित हैं, जो पाठक के दिल में उतरकर मन-मस्तिष्क पर छा जाते हैं। कुल मिलाकर ये नाटक अपनी ही व्यथा-कथा लगते हैं।
आम लोगों के दुःख-दर्द एवं भ्रष्टों की पोल खोलता नुक्कड़ नाटकों का रोचक संकलन ‘भ्रष्टाचार का अचार’।
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नाटक क्रम
नुक्कड़ नाटक की बात —Pgs. 7
1. कल्चर उर्फ चढ़ गया ऊपर रे —Pgs. 13
2. सुजाता मायने पैसा —Pgs. 45
3. रोशनी —Pgs. 77
4. भ्रष्टाचार का अचार —Pgs. 107
5. जनतंत्र के मुर्गे —Pgs. 145
जन्म : पटना में।
शिक्षा : भागलपुर विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक।
कृतित्व : एक दर्जन कहानियाँ और दो दर्जन नुक्कड़ नाटक, जिनकी हजारों सफल प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं। उनमें कुछ चर्चित नुक्कड़ नाटक हैं—‘जनतंत्र के मुर्गे’, ‘हमें बोलने दो’, ‘जिंदाबाद-मुर्दाबाद’, ‘रँगा सियार’, ‘भ्रष्टाचार का अचार’। ‘झोंपड़पट्टी’, ‘आखिरी सलाम’, ‘अंतिम युद्ध’, ‘गांधी ने कहा था’, ‘घर वापसी’, ‘मार पराजय’, ‘हवन कुंड’, ‘कह रैदास खलास चमारा’ और ‘असमाप्त संवाद’ (पूर्णकालिक नाटक)। ‘हमें बोलने दो’, ‘जनतंत्र के मुर्गे’, ‘कोरस का संवाद’ और ‘जमीन हमारी है’ पाँच नुक्कड़ नाटक, भ्रष्टाचार का अचार (नुक्कड़ नाटक-संग्रह) तथा एकल नाटक संग्रह ‘शताब्दी की परछाइयाँ’ प्रकाशित।
सम्मान : ‘नई धारा रचना सम्मान’, साहित्य कला परिषद्, दिल्ली की ओर से नाट्य-लेखन के लिए ‘मोहन राकेश सम्मान’।
संप्रति : उ.प्र. पावर कॉरपोरेशन में अधिशासी अभियंता।