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"बिहार को मेलों का राज्य कहें तो अचरज नहीं होना चाहिए। यहाँ के त्योहारों, पर्वों तथा मेलों की अनूठी सांस्कृतिक परंपरा का उदाहरण अन्यत्र नहीं मिलता है। कहा जाता है कि बिहार को नजदीक से जानने-समझने के लिए मेले में आना सबसे अच्छा साधन है। यहाँ एक साथ सभी चीजों की झलक देखने को मिल जाती है।
सोनपुर, मधेपुरा, मधुबनी, गया, राजगीर, सीतामढ़ी, वैशाली, बक्सर, खगड़िया, पूर्णिया आदि स्थानों पर लगने वाले मेलों में स्थानीय संस्कृति की झाँकी दिखाई पड़ती है। इन मेलों से जीवन की नीरसता तो दूर होती ही है, रोजमर्रा की चक्की में पिसनेवाला इनसान मेला घूमकर आत्मिक सुकून भी पाता है। दूसरे शब्दों में, इन मेले में आकर जिंदगी खिल उठती है। साथ ही नई पीढ़ी अपनी संस्कृति से परिचित भी होती है।
बिहार में कुछ ऐसे मेले हैं, जो विश्व स्तर पर विख्यात हैं। सोनपुर मेला, पितृपक्ष-मेला, पंचकोसी-मेला, मलमास- मेला, कल्पवास-मेला आदि को प्रमुख मेले ही नहीं, राष्ट्रीय व अतंरारष्ट्रीय स्तर पर विशेष मेलों की संज्ञा दी जाती है। सांस्कृतिक व व्यापारिक महत्त्व के साथ- साथ हर मेले का अपना एक इतिहास है, संस्कृति और परंपराएँ हैं।
बिहार को सम्यक् रूप में जानने- समझने के लिए 'बिहार के मेले' पुस्तक बहुपयोगी है"
सुबोध कुमार नंदन
जन्म : 5 नवंबर, 1961 को पटना (बिहार) में।
शिक्षा : एम.कॉम., पीजी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म (पटना विश्वविद्यालय)।
कृतित्व : ‘बिहार के पर्यटन स्थल और सांस्कृतिक धरोहर’, ‘बिहार के मेले’ पुस्तकें तथा 1985 से देश-विदेश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में पर्यटन, पुरातत्त्व, कला-संस्कृति, पर्व-त्योहार, मेला आदि विषयों पर शताधिक रचनाएँ प्रकाशित एवं आकाशवाणी व दूरदर्शन पटना से प्रसारित।
साक्षात्कार : भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ, डॉ. भूपेन हजारिका, पंडित किशन महाराज, डॉ. एन. राजम, पंडित शिव कुमार शर्मा, गजल सम्राट् पंकज उधास, डॉ. राजन-साजन मिश्र, डॉ. विश्वमोहन भट्ट, नलिनी-कमलिनी, पद्मश्री तीजन बाई, मकबूल फिदा हुसैन, पद्मश्री गिरजा देवी, पंडित जसराज, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया, प्रेरणा श्रीमली, वडाली बंधु आदि।
पुरस्कार-सम्मान : राहुल सांकृत्यायन पर्यटन पुरस्कार, पर्यटन सम्मान (पर्यटन विभाग, बिहार सरकार)।
कार्य : वरीय कॉपी राइटर, हिंदुस्तान (पटना व भागलपुर)
संप्रति: सीनियर चीफ कॉपी राइटर, प्रभात खबर,पटना।