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नील फैक्टरियों के किस्से आमतौर पर उत्तर बिहार से जुड़े हैं, वह भी चंपारण और तिरहुत से। इसका मुख्य कारण यह रहा है कि नील की खेती में शोषण पर आधारित तौर-तरीके के खिलाफ और नीलहे रैयतों (नील की खेती करनेवालों) के प्रति हो रहे अत्यधिक आर्थिक उत्पीड़न के खिलाफ चंपारण में सत्याग्रह हुए। इसलिए भारत में उपनिवेशवाद के शोषक चरित्र व साथ ही इसके प्रतिरोध के अध्ययन में रुचि रखनेवालों और इतिहासकारों के लिए उत्तर बिहार में नील की खेती जिज्ञासा के विषय रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक मिंडेन विल्सन रचित ‘History of Indigo Factory in Bihar’ का हिंदी अनुवाद है। यह रिपोर्ट मुख्यतः उत्तर बिहार के क्षेत्रों के नील उद्योगों के संबंध में है। मिंडेन ने उत्तर बिहार की लगभग सभी छोटी-बड़ी नील फैक्टरियों की स्थापना, क्रमिक विकास एवं उनके पतन का कारण सहित विस्तृत विवरण लिखा है तथा उत्तर बिहार के नील एवं चीनी उद्योगों के लिए बेहतर उत्पादन के तरीकों का भी उल्लेख किया गया है।
मिंडेन विल्सन एक ब्रिटिश नागरिक थे। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में नील उद्योग के प्रबंधन क्षेत्र में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। औपनिवेशिक भारत में प्रमुख समृद्ध नील उत्पादकों की श्रेणी में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। नील उद्योग के क्षेत्र में मिंडेन विल्सन ने अपना प्रारंभिक जीवन मॉरीशस में बिताया। भारत आने के पूर्व वे मॉरीशस के गन्ना उद्योग से भी जुड़े रहे। बेहतर जीवन की तलाश में मिंडन ने भारत आने का निर्णय लिया, जहाँ उनकेबड़े भाई पहले से ही नील उद्योग से जुड़े थे। वर्ष 1847 में अमेरिकन जहाज ‘अलबाटरोस’ से कलकत्ता पार्ट सिटी पर उनका आगमन हुआ। वहाँ से वे बिहार के नील उत्पादन क्षेत्र में आए। उसके पश्चात् बिहार के अनेक नील फैक्टरियों में सहायक प्रबंधक व प्रबंधक के तौर पर उन्होंने कार्य किया। नील उद्योग क्षेत्र में उनका व्यापक अनुभव था।
अजय कुमार त्रिवेदी
लंगट सिंह महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर से बी.ए. (ऑनर्स) तथा तत्कालीन बिहार विश्वविद्यालय से 1981 में एम.ए. (अर्थशास्त्र)। जून 1989 से जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना में संकाय सदस्य के तौर पर कार्य करना प्रारंभ किया। 2018 में सेवानिवृत्त।
कृतित्व : ‘वोटिंग बिहेवियर इन रूरल इंडिया’ शोध-पुस्तक का सह-लेखन।