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त्रिवेणी संघ बिहार में सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई लड़नेवाला पहला संगठन है। बिहार के पिछड़े समुदायों ने उसे बड़े ही धैर्य और परिश्रम के साथ सींचा तथा उसे अपनी लड़ाई का हथियार बनाया। त्रिवेणी संघ का गठन बिहार में पिछड़ी जातियों के बीच चले ‘जनेऊ आंदोलन’ का संगठनात्मक प्रतिफल था। साथ ही यह सत्ता में उनकी दावेदारी की लड़ाई का पहला प्रयास भी था। सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई आज स्थायित्व ग्रहण कर चुकी है और नए द्वंद्व उभरकर सामने आ रहे हैं। त्रिवेणी संघ के गठन, उसके प्रभाव, विस्तार एवं संघर्ष का अध्ययन और आकलन नहीं के बराबर हुआ है। त्रिवेणी संघ के विषय में प्रामाणिक तथ्यों की जानकारी के साथ इस पुस्तक में उसके इतिहास, उसके उत्थान और पतन की पूरी प्रक्रिया को प्रस्तुत किया गया है।
सामाजिक परिवर्तन के दस्तावेज में त्रिवेणी संघ, लेजिस्लेटिव •¤æ©¢Uसिल और विधानसभा में हुई आरक्षण पर बहस को दस्तावेज के रूप में शामिल किया गया है। ‘जनेऊ आंदोलन’ पर एक अप्रकाशित कविता ‘गोप चरितम्’ इसका महत्त्वपूर्ण भाग है। सामाजिक परिवर्तन हेतु चल रहे विभिन्न आंदोलनों का दिग्दर्शन कराते हुए विकासोन्मुख बिहार के बारे में आशावाद जगाती एक महत्त्वपूर्ण और उपयोगी पुस्तक।
जन्म : आरा (भोजपुर)। बिहार में सामाजिक परिवर्तन की क्रांतिकारी धारा से जुड़े श्रीकांत ने कुछ चर्चित कहानियाँ लिखीं। राजनीति और सामाजिक बदलाव पर कार्य करने में विशेष दिलचस्पी। बिहार में चुनाव : जाति, बूथ लूट और हिंसा, सामाजिक परिवर्तन और दलित आंदोलन पर पुस्तकें प्रकाशित। चर्चित नाटक ‘मैं बिहार हूँ’ के लेखक। ‘राजेंद्र माथुर पुरस्कार’ से सम्मानित। संप्रति : ‘दैनिक हिंदुस्तान’ पटना में विशेष संवाददाता।
जन्म : दरभंगा (बिहार)। साठ के दशक में सामाजिक आंदोलन की क्रांतिकारी धारा से जुड़े प्रसन्न कुमार चौधरी की भारतीय दर्शन और समाजशास्त्र में गहरी रुचि और सक्रियता रही है। उनकी कविता ‘सृष्टिचक्र’ काफी चर्चित रही। बिहार में सामाजिक परिवर्तन, दलित आंदोलन और 1857 पर महत्त्वपूर्ण कार्य। ‘राष्ट्रवाद और हिंदी समुदाय’ आलेख खासा चर्चित। पता : शांति निवास, बंपास टाउन, देवघर।