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दफ्तर की अवधि में बिलकुल ठीक समय पर बैजनाथ बाबू कार्यालय में पहुँचते, हाजिरी रजिस्टर पर दस्तखत करते, कुरसी-टेबल को चपरासी से झड़वाते, अलमारी की चाबी देते, टेबल पर दो-चार फाइलें रखवाते, कलमों का स्टैंड करीने से रखते, घंटी को बजाकर देखते; फिर कुरसी पर बैठते । किसी-न- किसी बहाने साहब के चेंबर में जाते । उन्हें शक्ल दिखाते । घर का कुशल- क्षेम और अपने लायक विशेष सेवा पूछते । ' भीतर किसको भेजूँ सर?' जैसा सवाल ' चस्पाँ करते । दफ्तर के मौसम का हाल बयान करते और ' आपकी मेहरबानी का धन्यवाद, मेहरबान ' कहकर सिर झुकाए बाहर आ जाते । बाहर आकर अपनी कुरसी पर बैठते । और.. .बिजूका बनाना शुरू कर देते । घर से लाए झोले को कुरसी पर लटका देते । अलमारी में से अपनी खैनी-तंबाकू की डिबिया टेबल पर रखते । चूने की डिबिया को आधी खुली रखकर पोजीशन देते । कलमदान में से एक कलम निकालकर उसे खुली छोड़ते । घर से लाए अतिरिक्त चश्मे को खोलकर सामनेवाली फाइल पर रखते । फिर चुपचाप अलमारी में से अपनी एडीशनल जैकेट निकालकर कुरसी के पीछे फैलाकर टाँग देते । सारा दफ्तर कनखियों से देखता था कि बिजूका बन रहा है । -इसी पुस्तक से
जन्म : 10 फरवरी, 1931 को रामपुरा, जिला-नीमच (म.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी) प्रथम श्रेणी, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (मध्य प्रदेश)।
प्रकाशन : (कविता संग्रह) ‘दरद दीवानी’, ‘जूझ रहा है हिंदुस्तान’, ‘ललकार’, ‘भावी रक्षक देश के’, ‘दो टूक’, ‘रेत के रिश्ते’, ‘वंशज का वक्तव्य’, ‘कोई तो समझे’, ‘ओ! अमलतास’, ‘आओ बच्चो’, ‘गाओ बच्चो’, ‘गौरव गीत’; (काव्यानुवाद) ‘सिंड्रेला’, ‘गुलिवर’, (कविता); ‘दादी का कर्ज’, ‘मन ही मन’, ‘शीलवती आम’; (मालवी गीत संग्रह) ‘चटक म्हारा चम्पा’, ‘अई जावो मैदान में’; (उपन्यास) ‘सरपंच’; (यात्रा वर्णन) ‘कच्छ का पदयात्री’; (कहानी संग्रह) ‘मनुहार भाभी’। इसके अलावा सैकड़ों संस्मरण एवं आलेख प्रकाशित। सन् 1945 से ही कांग्रेस में सक्रिय; 1967 में मध्य प्रदेश में विधायक और फिर राज्य मंत्री बने; 1984 में लोकसभा के लिए चुने गए; 1998 से मध्य प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य हैं ।
अब तक लगभग दस देशों की यात्रा कर चुके हैं ।