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"कविता में भावतत्त्व की प्रधानता होती है। रस को कविता की आत्मा माना जाता है। कविता के अवयवों में आज भी इसकी जगह सबसे अहम है। आज मुक्त छंद कविताओं की नदियाँ बह रही हैं। मुक्त छंद कविताओं में पद की जरूरत नहीं होती, सिर्फ एक भावप्रधान तत्त्व रहता है। जिसमें व्यक्ति के विभिन्न मनोभावों का चित्रण बखूबी किया गया है।
पुस्तक में प्रकृति और नैसर्गिक वातावरण को साधारण से शब्दों के माध्यम से सम्प्रेषित करना एक अनूठा प्रयोग है। साथ ही रिश्तों के महत्त्व को दर्शाती हुई कई कविताएँ हमारी मनुजता को झकझोरती भी हैं।
इस पुस्तक की लेखिका श्रीमती ममता मेहरोत्रा हैं, इसमें प्रकाशित कविताएँ जहाँ पाठकों में नई उम्मीदें जगाती हैं, वहीं इसे पढ़ने के बाद काव्य—प्रेमियों को लगता है कि उन्हें एक नया साथी मिल गया है।"
ममता मेहरोत्रा
शिक्षा : एम.एस-सी. (प्राणी विज्ञान)।
कृतित्व : ‘अपना घर’, ‘सफर’, ‘धुआँ-धुआँ है जिंदगी’ (लघुकथा-संग्रह), ‘महिला अधिकार और मानव अधिकार’, ‘शिक्षा के साथ प्रयोग’, ‘विद्यार्थियों के लिए टाइम मैनेजमेंट’, ‘विश्वासघात तथा अन्य कहानियाँ’, ‘जयप्रकाश तुम लौट आओ’ तथा अंग्रेजी में ‘We Women’, ‘Gender Inequality in India’, ‘Crimes Against Women in India’, ‘Relationship & Other Stories’ & ‘School Time Jokes’ पुस्तकें प्रकाशित। RTE Act पर लिखी पुस्तक ‘शिक्षा का अधिकार’ काफी प्रसिद्ध हुई और अनेक राज्य सरकारों ने इस पुस्तक को क्रय किया है। उनकी पुस्तकें मैथिली में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ संक्षिप्त डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का भी निर्माण किया है।
‘सामयिक परिवेश’ एवं ‘खबर पालिका’ पत्रिकाओं का संपादन। अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं से संबद्ध।
संप्रति : निशक्त बाल शिक्षा एवं महिला अधिकारों से संबंधित कार्यों में संलग्न।