₹250
गुड़ की डली, सूप, चँगेरी, अरबी, नारियल इत्यादि विविध प्रकार की चीजें गाड़ी पर लदी थीं। फटिकदा उन चीजों को उतरवाने में व्यस्त थे। फिर भी बोले, ‘‘वसूली का काम कैसा चल रहा है, भाई?’’
एक पल चुप्पी साधने के बाद फिर बोले, ‘‘लगता है, प्रातः भ्रमण को निकल रहे हो?’’
‘‘नहीं’’, मैंने कहा, ‘‘नीरू भाभी की एक चिट्ठी है, पोस्ट ऑफिस में डालने जा रहा हूँ। बहुत ही जरूरी चिट्ठी है।’’
‘‘चिट्ठी! किसकी चिट्ठी बताया? छोटी बहू की!’’
फटिकदा के चेहरे का भाव जैसे आमूल परिवर्तित हो गया हो।
बोले, ‘‘बड़मातल्ला अपने माँ के पास भेज रही हैं?’’
‘‘हाँ, मगर।’’
वे बोले, ‘‘देखूँ।’’
मैंने चिट्ठी दी। दो-चार पंक्तियाँ पढ़ते ही पता नहीं, फटिकदा को क्या हुआ कि चिट्ठी को उन्होंने चिंदी-चिंदी कर दी। बोले, ‘‘इस चिट्ठी को भेजने से कोई काम नहीं होगा, भाई कुछ अन्यथा मत लेना।’’
फिर भी मेरा विस्मय दुगुना हो गया।
—इसी संग्रह से
सुप्रसिद्ध कथाकार-उपन्यासकार बिमल मित्र ने समाज, धर्म, रिवाज-परंपरा, शासन-नीति एवं सामाजिक संबंधों को अलग नजरिए से देखा-परखा है। समाज की हर समस्या को कहानी में उठाया है और यथासंभव उसका समाधान भी सुझाया है। पठनीयता एवं रोचकता से भरपूर प्रेरक कहानियाँ।
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अनुक्रम
1. अमेरिका — Pgs. 7
2. मरजी खुदा की — Pgs. 27
3. बहू — Pgs. 51
4. घूस — Pgs. 71
5. पद्मभूषण — Pgs. 80
6. घरेलू — Pgs. 102
7. अमीर और उर्वशी — Pgs. 122
8. जिंदाबाद — Pgs. 134
9. नीला नशा — Pgs. 157
जन्म : 18 मार्च, 1921 को कलकत्ता में।
शिक्षा : कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम.ए.।
रेलवे में विभिन्न पदों पर रहते हुए भारत के अनेक भागों का भ्रमण और जनजीवन का निकट से अध्ययन। 1956 में नौकरी से अलग होकर स्वतंत्र साहित्य सर्जन का आरंभ।
बँगला और हिंदी के भी सर्वाधिक प्रिय उपन्यासकार। इनके उपन्यासों की सबसे बड़ी विशेषता है विश्वव्यापी घटनाप्रवाह के सार्वजनीन तात्पर्य को अपने में समेट लेना।
प्रकाशन : ‘अन्यरूप’, ‘साहब बीबी गुलाम’, ‘राजाबदल’, ‘परस्त्री’, ‘इकाई दहाई सैकड़ा’, ‘खरीदी कौडि़यों के मोल’, ‘मुजरिम हाजिर’, ‘पति परमगुरु’, ‘बेगम मेरी विश्वास’, ‘चलो कलकत्ता’ आदि कुल लगभग 70 उपन्यासों की रचना। ‘पुतुल दादी’, ‘रानी साहिबा’ (कहानी-संग्रह)। ‘कन्यापक्ष’ (रेखा-चित्र)।
निधन : 2 दिसंबर, 1991।