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"विचार आता है, सभी फूल अशोक जैसे क्यों नहीं बनाए सृष्टा ने? कौन सी विवशता के कारण कुटज की, कुटज जैसे उजाड़ में ही जन्मकर जीवन बिता देनेवालों की सृष्टि करनी पड़ी। इसलिए कि कुटज नहीं बनाए जाते तो अशोक की पहचान कैसे बनती? सर्जक की विवशता थी कि वह अशोक के आभिजात्य को दरशाने के लिए कुटज के बियाबान को रचता। बियाबानों की नियति ही है कि वे हरे-भरे उद्यानों को पहचान देने के लिए निर्मित कर दिए जाते हैं। कुटज और उसके जैसे फूल इसी विवशता की देन हैं और यह विवशता भी इसलिए है कि अशोक की सामथ्र्य के बूते पर ही सर्जक की सत्ता टिकी रहती है, इसलिए सृष्टा की विवशता का किरीट है कुटज।
ठीक अशोक और कुटज की तरह मनुष्य भी गढऩे पड़े। सर्जक ने आरंभ में बनाए तो सभी मनुष्य एक जैसे, लेकिन समय के आगे बढऩे के साथ यह समानता स्वयं सृष्टा को भारी पड़ी। मनुष्य ने ही उसे विवश किया कि वह इस समानता में बदलाव लाए और परिणाम यह हुआ कि फिर मनुष्य भी अशोक और कुटज होने लगे।
—इसी संग्रह से
प्रसिद्ध ललित-निबंधकार श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय के भाषाई लालित्य और भारतीय दृष्टि से समादृत निबंध, जो पाठकों के अंतस को छू जाएँगे और रससिक्त करेंगे।
आवरण—अजंता की दूसरी गुफा की सीलिंग पर निर्मित भित्तिचित्र : पाँचवीं सदी।"