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बचपन से ही हम—मैं, मेरी बड़ी बहन और छोटा भाई—अपने नाना से, यानी अपने बाईजी से उनकी अपनी शैली में और विशेष भावुकता से बताई अकबर-बीरबल की प्रचलित कहानियों को बहुत उत्सुकता से सुनते थे। इनके अलावा उनके हुक्के की गुड़गुड़ाहट भरे कशों के साथ कई तात्कालिक मन-गढ़ी कथाओं में हम हर शाम लालसा और कशिश से लीन हो जाते। मुझे लगता है कि कहानियों की रचना में मेरी रुचि मेरे नाना की देन है।
ग्यारह साल की उमर से जब मैंने अपनी बहन और भाई को बिना पूर्व कल्पना के धारावाही ढंग से खुद-ब-खुद बहती जाती कहानियाँ बतानी शुरू कीं, तब वे हर रोज़ कहानी की अगली कड़ी का बेकली से इंतज़ार करते—ऐसा चसका लग गया था हम तीनों को! मेरी स्वाभाविक ही प्रमुख वृत्ति हँसी और दिल्लगी में थी। अभी हाल ही में बच्चों की माँग पर मुझे खड़े पैर कहानी बुनते पा, मेरी बेटी रन्नए ने मुझे बच्चों के लिए हिंदी में कहानियाँ लिखने का सुझाव दिया। इसीलिए उसकी प्रेरणा से उपजी ‘बिंदास बंदर और बातूनी बारात’ की झाँकी साक्षात् आपके सामने है।
इंदु रांचन की विचारधारा का अंदाज़ा उनकी कहानियों से लगाया जा सकता है। इंडिया और अमरीका की लंबी रिहाइश की वजह से उनके अनुभव में दोनों सभ्यताओं का प्रभाव दिखता है। एम.ए. इंग्लिश लिटरेचर की डिग्री यूनिवर्सिटी ऑ़फ विस्कॉनसिन, अमरीका से प्राप्त कर, कॉलेज में अंग्रेज़ी भाषा व साहित्य पढ़ाने में उनका योगदान रहा। उनकी अंग्रेज़ी ग्रामर की तीन किताबें छपी हैं। 2010 में उनका बच्चों की कहानियों का संग्रह बिंदास बंदर और बातूनी बारात प्रकाशित हुआ। हिंदुस्तान टाइम्स की नंदन पत्रिका में भी उनकी कहानियाँ छपी हैं। इंदु रांचन का झुकाव बच्चों की कथा-रचना में स्वाभाविक ही है। हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखी बहुत सी कथाएँ अभी हस्तलेख रूप में ही हैं।
इनकी दो कृतियाँ— एक उपन्यास नो चाइल्डज़ प्ले और दूसरा कहानी-संग्रह फ़्रॉम द टैरस शीघ्र ही प्रकाशित हो पुस्तक रूप में आने वाली हैं।