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आजकल लोग ‘धर्म’ शब्द की स्वानुकूल विकृत व्याख्या प्रस्तुत करते रहते हैं, किंतु यह तो एक व्यापक कर्तव्यबोधक शब्द है। आर्षग्रंथों में उल्लिखित धर्म के लक्षणों के अनुकूल यदि आचरण किया जाए तो समाज की सारी बुराइयाँ स्वतः समाप्त हो सकती हैं। धर्म तो समाज में शांति एवं सुव्यवस्था बनाए रखने के लिए बनाया गया एक विशिष्ट नियम है, जो व्यक्ति के ऐहिक सुख के अतिरिक्त पारलौकिक यात्रा को भी सुगम बना देता है।
किसी भी राष्ट्र के प्राण में निहित राष्ट्रीयता की प्राणवायु वहाँ की संस्कृति ही होती है, जो उसकी समृद्धि हेतु अनिवार्य तत्त्व है। भारतीय संस्कृति का आधार यहाँ के आर्षग्रंथ-पुराण, महाभारत और रामायण हैं। इसलिए भारतीय संस्कृति को जानने के लिए इन ग्रंरथों में उपलब्ध धार्मिक तत्त्वों का अनुशीलन अपेक्षित होता है।
वृहत्त्रयी के तीनों ही महाकाव्य, पुराण और महाभारत की इतिवृत्ति पर आधारित एक श्रेष्ठ साहित्यिक रचना हैं। सर्वविदित है कि ऐतिहासिक आलोक के बिना भविष्य का पथ उज्ज्वल नहीं हो सकता। वृहत्त्रयी के महाकाव्य द्वापर युगीन सामाजिक व्यवस्था की संपूर्ण व्याख्या प्रस्तुत करते हैं, किंतु प्रस्तुत पुस्तक में तत्कालीन समाज की धार्मिकी व्यवस्था को केंद्र में वर्तमान के साथ तुलनात्मक व्याख्या को अपना आलोच्य विषय बनाया गया है। इससे हजारों वर्ष पूर्व भारतीय समाज में प्रचलित धार्मिकी व्यवस्था पर प्रकाशपात होता है, जिससे व्यक्ति स्वयं एतद्विषयक निर्णय लेकर वर्तमान में फैलाए जा रहे धर्म-संबंधी विभ्रांतियों पर स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हो सके।
सत्यशीलसंग सदाचार, सेवा सुकर्म जो करते।
आर्षग्रंथ की भाषा में भी, उसे धर्म ही कहते॥
अवकाश-प्राप्त व्याख्याता (संस्कृत) बोकारो इस्पात संयंत्र (शिक्षा-विभाग)
जन्म : 20 मार्च, 1950 ई. को ग्राम बरदाही (बरहारा हॉल्ट स्टेशन), जिला-मधुबनी (मिथिला) में।
पिता : दिवंगत पूज्यपाद देव नारायण झा।
वर्तमान आवास : 1150/12 ‘इ’ बोकारो इस्पात नगर (झारखंड)।
उपलब्धि : ‘आदर्श शिक्षक सम्मान पुरस्कार’ (बोकारो)।
‘प्रशस्ति प्रमाण-पत्र’ नागार्जुन शतवार्षिकी समारोह, भारतीय भाषा संस्थान मैसूर एवं मैथिल प्रवाहिका, रायपुर (छत्तीसगढ़)।
‘मेरिट अवार्ड (हिंदीनारा), अखिल भारतीय सुझाव प्रतियोगिता, नोएडा (दिल्ली)।
सम्मान-पुरस्कार : काव्य समारोह अखिल भारतीय साहित्य परिषद् सौजन्य— (एमएसएमइ) झारखंड सरकार। ‘विप्रगौरव सम्मान’ संपूर्ण विप्र समाज बोकारो। ‘संस्कृत रत्नम् सम्मान’ राष्ट्रीय संस्कृत प्रसार परिषद्, बोकारो।
संप्रति—संलग्न सामाजिक एवं साहित्यिक सेवाप्रकल्प।