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‘बुंदेलखंड चित्रावली’ इतिहास, कला और संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण समन्वय ग्रंथ है। इसमें बुंदेलखंड से संबंधित 101 विभूतियों, राजा-महाराजाओं और महारानियों के चित्र हैं तथा उन सभी का संक्षिप्त इतिहास भी वर्णित है। बुंदेलखंड की धरती ने इतने युद्ध देखे हैं, जितने भारत के किसी अन्य भू-भाग ने शायद ही देखे हों। इन युद्धों ने इतना रोमांचक और अद््भुत इतिहास गढ़ा, इस कारण चित्रों को प्रस्तुत किया जाना अत्यंत आवश्यक था। यह कार्य कोई सक्षम चित्रकार, इतिहासकार और एक विद्वान् ही कर सकता था। दिव्यजी ने यह कर दिखाया। इस महत्त्वपूर्ण कार्य में हजारों मील की यात्राएँ शामिल हैं। वर्षों की तपस्या और साधना है। बुंदेलखंड के इतिहास, कला और संस्कृति को समेटकर एक स्थान पर लाना दुस्तर कार्य था।
बुंदेलखंड के संदर्भ में इस प्रकार का यह पहला ग्रंथ है। इसके प्रकाशन से बुंदेलखंड के अदभुद इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ेगा और बुंदेलखंड के अछूते, अनावृत इतिहास संदर्भों की जानकारी भी पाठकों को प्राप्त होगी।
विद्यार्थी, शोधार्थी ही नहीं, इतिहास, कला और संस्कृति-प्रेमियों के लिए एक कालजयी कृति। "
16 मार्च, 1907 को पन्ना (म.प्र.) के अजयगढ़ में जन्म। ‘बुंदेलखंड के गौरव’ के नाम से मशहूर श्री अंबिका प्रसाद ‘दिव्य’ की गणना देश के शीर्षस्थ ऐतिहासिक उपन्यासकार, कवि एवं चित्रकार के रूप में की जाती है। साहित्य की समस्त विधाओं में दिव्यजी ने साठ महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। प्रतिष्ठित पुरस्कारों, सम्मानों से गौरवान्वित दिव्यजी लोकप्रिय समाजसेवी व क्रांतिदर्शी थे। उनके द्वारा रचित उपन्यास ‘खजुराहो की अतिरूपा’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘द पिक्चरस्क खजुराहो’ ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया। दिव्यजी की स्मृति में गत 15 वर्षों से साहित्य सदन, भोपाल द्वारा अनेक साहित्यिक पुरस्कार प्रदान किए जा रहे हैं। उनका अवसान 5 सितंबर,1986 को हुआ।
प्रमुख कृतियाँ : निमियाँ, मनोवेदना, बेलकली, खजुराहो की अतिरूपा, जयदुर्ग का रंगमहल, पीताद्री की राजकुमारी, जोगीराजा, जूठी पातर, काला भौंरा (उपन्यास); गांधी परायण, अंतर्जगत, रामदर्पण, दिव्य दोहावली, पावस, पिपासा, पश्यंती, चेतयंती (काव्य); लंकेश्वर, भोजनंदन कंस, निर्वाण पथ, तीन पग, कामधेनु, सूत्रपात, चरणचिह्न, प्रलय का बीज (नाटक); दीपक सरिता, निबंध विविधा, हमारी चित्रकला, लोकोक्तिसागर (निबंध)।