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'बुत मरते नहीं’ जाति के नाम पर इनसानियत के बँटवारे का लेखा-जोखा और सियासी महत्त्वाकांक्षाओं की तहकीकात है। यह उपन्यास समाज की नसों में दौड़ती जातिवाद की नफरत को दावानल बनाकर अपनी रोटियाँ सेंकनेवालों की कुत्सित भावनाओं को प्रकट करता है। सदियों से इनसानों को बाँटकर इनसानियत को दो फाड़ कर उनके बीच भेदभाव की दीवार खड़ी करनेवालों के मुखौटे नोंचता है। इनसानों की कोमल भावनाओं को खत्म कर देनेवालों की हकीकत बयाँ करता है यह उपन्यास। यह मरणासन्न इनसानियत की परतों को उधेड़कर उसकी अनसुनी कहानी भी कहता है।\
यह कृति नफरत के घनघोर अँधेरे में करुणा, दया और प्रेम जैसी कोमल भावनाओं को महसूस कराती है। इनसानों के बीच सदियों से चली आ रही उलझनों और गुत्थियों को सुलझाने का दस्तावेज यह उपन्यास बने...आँसुओं के पथ पर उम्मीदों के नव-जागरण की कहानी साबित हो, यही प्रयास है।
ब्रह्मवीर सिंह
जन्मभूमि : भरतपुर (राजस्थान)
कर्मभूमि : रायपुर (छत्तीसगढ़)
ब्रह्मवीर सिंह वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं। प्रिंटऔर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में समान रूप से सक्रिय रहे हैं। पत्रकारिता के साथ उपन्यासऔर नियमित कहानी लेखन करते हैं। दैनिक भास्कर, भोपाल से पत्रकारिता का प्रारंभ। सहारासमय, नोएडा एवं रायपुर (छत्तीसगढ़) में कार्यरत रहे हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय दैनिकहरिभूमि समाचार-पत्र समूह में संपादक समन्वय के पद पर कार्यरत हैं।
पूर्व में प्रकाशित ‘दंड का अरण्य’, नक्सलवादपर आधारित चर्चित उपन्यास है, जिसे अनेक छात्रों ने शोध-कार्य में शामिल किया है।
ब्रह्मवीर सिंह की बीस से ज्यादा कहानियाँ प्रकाशितहुई हैं जिनमें प्रमुख हैं—‘उधार की दुलहन’, ‘दशरथ का वनवास’, ‘हृश्वयार का लास्ट स्टेज’,‘अभागी का भाग्य’, ‘लहँगे वाला लड़का’, ‘अमावस का उजाला’ और ‘इश्क फिर से’। ‘उधार कीदुलहन’ का कॉमिक वर्जन भी तैयार किया गया है।
पुरस्कार : छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिया जाने वाला पत्रकारिता का सर्वोच्च ‘चंदूलाल चंद्राकरपत्रकारिता पुरस्कार’, माधव राव सप्रे संग्रहालय द्वारा ‘दंड का अरण्य’ के लिए पुरस्कृत।जनहित की खबरों के लिए प्रतिष्ठित माता सुंदरी पत्रकारिता पुरस्कार।
संपर्क : brahmaveer@gmail.com