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कैंसर का नाम सुनते ही साक्षात् मृत्यु नजर आने लगती है। यह एक ऐसा रोग माना जाता है, जो लाइलाज और अत्यंत कष्टकर होता है। इसके संबंध में फैली तमाम भ्रांतियों से न केवल रोगी बल्कि उसके परिजन, मित्रजन व संबंधी भी अज्ञात भय में जीते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में कैंसर विशेषज्ञ लेखिका डॉ. वृंदा सीताराम ने लीक से हटकर कैंसर से जूझने, उसे पराजित करने के लिए कुछ अलग ही तथ्य, व्यवहार एवं विधियाँ सुझाई हैं। पुस्तक कैंसर के मरीजों, उनके परिजनों व मित्रों को इस रोग को सहज और खेल-भावना से लेने की सोच अपनाने तथा विकसित करने की सलाह देती है—एकदम व्यावहारिक व वस्तुपरक। अत्यंत उपयोगी पुस्तक जो कैंसर-पीड़ितों के लिए सच्चा साथी और मित्र साबित होगी।
बंगलौर में जनमी प्रख्यात कैंसर विशेषज्ञ डॉ. वृंदा सीताराम ने निमहैन्स (NIMHANS) से क्लीनिकल साइकोलॉजी में एम.फिल. तथा साइको-ऑनकोलॉजी (Psycho-oncology) में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। ‘कैंसर के मरीजों में दीर्घकालिक दर्द की रोकथाम तथा व्यावहारिक प्रबंधन’ पर चिकित्सकीय शोध करके उन्होंने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। अमेरिका के कुछ उत्कृष्ट कैंसर केंद्रों—मेमोरियल स्लोअन केटरिंग, फ्रेड हचिंसन कैंसर सेंटर, एम.डी. एंडरसन कैंसर सेंटर और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में जाकर उन्होंने व्यापक स्तर पर प्रशिक्षण देने का कार्य किया है। उन्हें कैंसर का लगभग दो दशक का व्यक्तिगत चिकित्सकीय अनुभव है।
साइको-ऑनकोलॉजी से संबद्ध एक एन.जी.ओ. (गैर-सरकारी संगठन) का संचालन।
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