पवन गंभीर बातों को आराम से देशज शैली में कह जाते हैं। यही इनकी खूबी है। आप पवन के कार्टूनों को देखकर मुसकराए बिना नहीं रह सकते। लालू प्रसाद यादव तो उनके प्रिय पात्र रहे हैं और नीतीश कुमार पवन के कार्टून को निहार लेने के बाद ही अखबार पढ़ते हैं। पवन के कार्टून की आड़ी-तिरछी रेखाएँ उनके पात्रों को जीवंत बनाती हैं, यही उनकी कला की खूबी है।
पवन के पात्र आम आदमी की बोली बोलते हैं और पटनिया, मगही से लेकर भोजपुरी में भी खूब संवाद करते नजर आते हैं। पवन की संप्रेषणीयता की यही खूबी है। वे विधानसभा चुनाव में लालटेन भुकभुकाय नम: और बाबा वेलंटाइन तथा नए साल के जश्न में शराब पीकर लोट-पोट होने वालों को बंदरों के साथ संवाद कराते नजर आते हैं। उनका चुटीला व्यंग्यात्मक लहजा आम जन को प्रभावित करता है।
पवन के कार्टूनों में विषयों की विविधता होती है। उनका आम आदमी अथवा उनका पात्र दु:ख में दुखी और खुशी के मौके पर अपने को रोकता नहीं है। आम आदमी की बात बोलता कार्टून पवन को रेखांकन कला की दुनिया में खास बना देता है।
जन्म : 14 अगस्त, 1978।
शिक्षा : हिंदी से बी.ए.।
कृतित्व : पाठकों के अंतस को छू जाने, गुदगुदाने और खिलखिलाने वाले अब तक 21000 कार्टून विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। इनकी रचनात्मक यात्रा वर्ष 1984 से शुरू हुई। साप्ताहिक ‘प्रत्येक’ के बाद ‘दि टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘हिंदुस्तान’ के क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय संस्करणों तक में कार्टून लगातार प्रकाशित।
‘लालू लीला’, ‘खोलना मना है’, ‘इलेक्शन टू इलेक्शन’ के अलावा बच्चों के लिए कार्टून की दस पुस्तकें प्रकाशित।
पुरस्कार : अब तक छोटे-बड़े कई पुरस्कारों से सम्मानित।
संप्रति : ‘हिंदुस्तान’ (पटना) में सीनियर कार्टूनिस्ट।