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‘‘सुरागों से आपराधिक मामले की गुत्थी सुलझ जाती है। अपराधी कोई-न-कोई सुराग जरूर छोड़ते हैं।’’
किशोर की हत्या के मामले को सुलझाने के लिए तेज-तर्रार इंस्पेक्टर जेम्स और युवा डिटेक्टिव अमर सागर एक साथ आते हैं, जो एक जाने-माने कारोबारी हर्ष शिंदे का मैनेजर था। कई सुरागों का सिरा खोलकर भी उन्हें हल नहीं मिलता, जबकि परिस्थितियों से लगने लगता है कि यह एक हादसा है और केस बंद कर देना चाहिए।
अमर बेचैन हो उठता है और जाँच को आगे बढ़ाता है, क्योंकि उसे लगता है कि यह एक मर्डर है। जब पेचीदगी सच्चाई पर हावी होने लगती है, तब परिवार का हर एक शख्स शक के दायरे में आता है। क्या अमर उन सुरागों में छिपे मायने देख पाएगा? क्या कातिल शिंदे परिवार का ही कोई सदस्य है? क्या अमर की धारणा उसे केस को सुलझाने में मदद करेगी या वह इसमें उलझकर रह जाएगा? सुरागों से आपराधिक मामलों की गुत्थी सुलझ जाती है। अपराधी कोई-न-कोई सुराग जरूर छोड़ते हैं। लेकिन केस नं. 56 ऐसी बातों को फिजूल साबित करने पर आमादा है।
चलिए जाँच के उस सफर पर, जिसमें दोनों कुछ अविश्वसनीय तथ्यों से परदा उठाते हैं।
चंद्रशेखर उस्मानिया विश्वविद्यालय से एम.ई. स्नातक हैं। वे जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी में विगत 8 वर्षों से लीड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर के रूप में कार्यरत हैं। ‘केस नं. 56’ उनका पहला उपन्यास है, कई अन्य सृजनकाल में हैं। रहस्य कथाओं के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें लेखक बनने की प्रेरणा दी और वे अपने पाठकों पर अपना प्रभाव जमाने के मार्ग पर अग्रसर हैं। पाठन एवं पर्यटन उनकी रुचियाँ हैं। एक गृहस्थ के रूप में वे अपने जुड़वाँ बच्चों के साथ समय बिताते हैं, परंतु जैसे ही उनके आसपास की दुनिया सो जाती है, उनके कथा लेखन का प्रभामंडल उद्दीप्त हो उठता है।
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