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'सरकारी नौकर की स्थिति बिलकुल उस बँगले में रहनेवाले कुत्ते की तरह होती है, जिसे सबकुछ मिला हो मगर जिससे भौंकने की स्वतंत्रता छीन ली गई हो। कुत्ता बगैर खाए-पिए रह सकता है, मगर बिना भौंके उसके लिए जीना मुश्किल हो जाएगा। कमोबेश यही परिस्थिति मानव की भी है। स्वयं को स्वतंत्रता से अभिव्यक्त करना मनुष्य की एक बुनियादी आवश्यकता है। यदि यह आवश्यकता पूरी न हो तो जीवन ही बेमानी जैसा लगने लगता है। और सरकारी नौकर वह जीव होता है जो कुछ हजार रुपयों और चंद सुविधाओं के लिए अपनी इस बुनियादी जरूरत और अधिकार का सौदा कर चुका होता है।’
—इसी उपन्यास से
एक मर्मस्पर्शी उपन्यास जो मनोरंजन तो करता ही है, साथ में पाठक को झकझोरता है और सोचने के लिए विवश करता है। हमारे देश और समाज में मूल्यों में आ रही निरंतर गिरावट और उसके साथ-साथ चल रही पैसे और 'पावर’ की अंधी दौड़ का सशक्त चित्रण करता हुआ एक ऐसा उपन्यास, जिसे आप बार-बार पढऩा चाहेंगे।
गौरव कृष्ण बंसल विलक्षण व्यक्तित्व के धनी हैं। भारतीय रेलवे में प्रथम श्रेणी के अधिकारी हैं। वह एक कवि, गायक, कलाकार, संगीतज्ञ और खिलाड़ी हैं। इसके अलावा वह एक कुशल वक्ता तथा प्रेरक व्यक्ति और लेखक हैं। उनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हैं—‘बिटर स्वीट्स’ (अंग्रेजी) कहानियों की पुस्तक है और उर्दू में ‘सब कुछ’ कविताओं का संग्रह है। वह शायद अकेले ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने तीन भाषाओं—हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी—में लिखा है। उन्होंने ऐसी विविध शैलियों का इस्तेमाल किया है, जैसे हास्य-व्यंग्य, सामाजिक पहलू और प्रेरणादायक पुस्तकें—दोनों ही गद्य और पद्य में। उन्हें ‘लखनऊ मैनेजमेंट एसोसिएशन’ और ‘टाइम्स ग्रुप’ द्वारा ‘परसन विद लीडरशिप पोटेंशियल फॉर द नेशन’ के रूप में चुना गया। उन्हें कई सामाजिक संस्थानों द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है। वह एक योग्य शिक्षक हैं, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सफलता पाने के लिए छात्रों को प्रेरित किया है।