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कृष्ण करुणा का साक्षात् रूप हैं और गांधी प्रेम का एक अनोखा आकार। गांधी का जीवन सत्य को प्राप्त करने की प्रक्रिया है। कृष्ण का जीवन सत्य की प्राप्ति के बाद का आचरण है। कृष्ण का जीवन-ध्येय धर्म की संस्थापना था और गांधी का जीवन-ध्येय सत्य की प्राप्ति था। इन दोनों विरल व्यक्तित्वों के जीवन का परीक्षण करने के पश्चात्, उनके कर्मो की मीमांसा करने के पश्चात् क्या हम ऐसा कह सकते हैं कि वे दोनों अपने-अपने उद्देश्य में सफल हुए?
सीने पर हाथ रखकर इसे कह पाना दुष्कार है।...और फिर भी देश या दुनिया को, और शायद समूची मानव जाति का निर्वहन कृष्ण और गांधी के बिना न कभी हुआ है, न होने वाला है।
कृष्ण और गांधी दोनों तो ऐसे प्रतीक हैं जिनके स्पर्श के बिना मानव जाति का बच पाना असंभव है। मनुष्य जाति का यह सद्भाग्य रहा है कि ऐसे प्रतीक समय-समय पर उसे प्राप्त होते रहे हैं।
जिस पल मनुष्य जाति ऐसे प्रतीक पैदा करने की क्षमता गँवा देगी, वह इतिहास का अंतिम पल होगा।
जन्म : 30 जून, 1937 को भावनगर, गुजरात में।
श्री दिनकर जोशी का रचना-संसार काफी व्यापक है। तैतालीस उपन्यास, ग्यारह कहानी-संग्रह, दस संपादित पुस्तकें, ‘महाभारत’ व ‘रामायण’ विषयक नौ अध्ययन ग्रंथ और लेख, प्रसंग चित्र, अन्य अनूदित पुस्तकों सहित अब तक उनकी कुल एक सौ पच्चीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें गुजरात राज्य सरकार के पाँच पुरस्कार, गुजराती साहित्य परिषद् का ‘उमा स्नेह रश्मि पारितोषिक’ तथा गुजरात थियोसोफिकल सोसाइटी का ‘मैडम ब्लेवेट्स्की अवार्ड’ प्रदान किए गए हैं।
गांधीजी के पुत्र हरिलाल के जीवन पर आधारित उपन्यास ‘प्रकाशनो पडछायो’ हिंदी तथा मराठी में अनूदित। श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित दो ग्रंथ—‘श्याम एक बार आपोने आंगणे’ (उपन्यास) हिंदी, मराठी, तेलुगु व बँगला भाषा में अनूदित; ‘कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्’ हिंदी भाषा में तथा द्रोणाचार्य के जीवन पर आधारित उपन्यास ‘अमृतयात्रा’ हिंदी व मराठी में अनूदित हो चुका है। ‘35 अप 36 डाउन’ उपन्यास पर गुजराती में ‘राखना रमकडा’ फिल्म निर्मित।