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कहानियाँ अंतर्मन की वेदनाओं, समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वास और अन्याय तथा राग-द्वेष को उजागर करते हुए सचेत करती हैं, सही मार्ग प्रशस्त करती हैं। हमारा देश कृषि प्रधान और ग्रामों का समूह है। इसमें निवास करनेवाला वर्ग प्रारंभ से ही शोषित रहा है। किसानों की स्थिति दयनीय रही और आज भी है। पहले से ग्राम्य जीवन में बहुत बदलाव आए हैं। किसानों और खेतिहर मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए शासन द्वारा अनेक योजनाएँ चलाकर उनके उत्थान के प्रयास किए जा रहे हैं, किंतु बुनियादी परिवर्तन नहीं हो पा रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि नीचे से ऊपर शासन और प्रशासन जिन भावनाओं के साथ योजनाएँ बनाते हैं, उनका क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। लालची और भ्रष्ट लोगों की जो शृंखला बनी हुई है, उसको तोड़ पाना कठिन हो रहा है। वे प्रत्येक मार्ग में अवरोध और अड़ंगे लगाने के विकल्प ढूँढ़ लेते हैं। तू डाल-डाल, मैं पात-पात—इसी साँप-सीढ़ी के खेल में कृषक, मजदूर तथा असहाय वर्ग फँसे हुए हैं। उनके द्वारा भोगे जा रहे यथार्थ का चित्रण ग्राम्य जीवन की इन कहानियों में समाहित है।
ग्रामीण परिवेश और देहात में किसान एवं आम जन को होने वाली कठिनाइयों, विसंगतियों, ज्यादतियों एवं उत्पीड़न को कहानियों के माध्यम से सामने लानेवाला यह कहानी-संग्रह ‘चलें गाँव की ओर’ रोचक-मनोरंजक तो है ही, पाठकों के मन को उद्वेलित करनेवाला भी है।
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एम.डी. मिश्रा ‘आनंद’
जन्म : 6 मई, 1936।
रचना-संसार : मोक्ष की राह (धार्मिक), बदरीनाथ सहित शिवलोक की यात्रा (यात्रा-संस्मरण), मैं कौन हूँ तथा पंख (काव्य-संग्रह), इंद्रधनुष के रंग जीवन के संग (कहानी संग्रह); लगभग 2500 रचनाएँ देश की विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित। आकाशवाणी केंद्र छतरपुर एवं भोपाल से अनेक कार्यक्रमों का प्रसारण। सब टी.वी. मुंबई से ‘वाह-वाह’ कार्यक्रम में रचनाओं का प्रसारण।
विदेश-यात्रा : पेरिस (फ्रांस), स्विट्जरलैंड, जर्मनी।
सम्मान-पुरस्कार : साहित्य शिरोमणि सम्मान, अंबिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण, राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान, डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी सम्मान, साहित्य सुधाकर सम्मान, अखिल भारतीय ग्राम्यकथा पुरस्कार, साहित्य सृजन सम्मान एवं अन्य प्रतिष्ठित सम्मान।
म.प्र. शासन के राजस्व विभाग में तहसीलदार के पद से सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन।