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इस कविता संग्रह में देशप्रेम, प्रेम, प्रकृति तथा दार्शनिक व सामाजिक तथा अन्य विषयों पर कविताएँ सम्मिलित हैं। देश-प्रेम की कविताओं में कवयित्री न केवल भारत के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है बल्कि भारत के गौरव को पुनः जीवित करने की ओर मिलकर नया कल बनाने के लिए प्रेरित करती है। प्रेम पर लिखी कविताओं में मिलन तथा विरह दोनों का अच्छा वर्णन है।
‘संध्या सिदूर लुटाती है’ कविता में रवि तथा संध्या को प्रेमी-प्रेमिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रकृति पर अच्छी कविताएँ हैं। इन कवताओं में कवयित्री प्रकृति से प्राप्त उपहारों की प्रशंसा करती है और प्रकृति से सीख लेने को प्रेरित करती है। दार्शनिक कविताओं में कवयित्री भौतिक वस्तुओं से अधिक संस्कारों को महत्त्व देती है और आत्मबोध के लिए प्रेरित करती है। सामाजिक विषयों में बाल-शोषण, नारी-शक्ति, महिला-भ्रूण हत्या आदि पर सशक्त कविताएँ हैं।
भाषा की दृष्टि से कविताओं में विविधता है। एक ओर कुछ कविताएँ जयशंकर ‘प्रसाद’ की शैली की याद दिलाती हैं तो दूसरी ओर कुछ कविताओं, जैसे—‘क्यों याद आई आज’ में उर्दू शब्दों का बाहुल्य है। पुस्तक रोचक, पठनीय और संग्रहणीय है। मैं हिंदी साहित्य जगत में कुसुम वीर जी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।
—डॉ. दिनेश श्रीवास्तव
संपादक, ‘हिंदी-पुष्प’
मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया
शिक्षा : आगरा विश्वविद्यालय, वर्ष 1970, बी.ए. प्रथम श्रेणी, स्वर्ण पदक, सर्वोत्तम छात्रा । 1972 में एम.ए. (मनोविज्ञान), प्रथम श्रेणी ।
विशेष : 1968 से 1972 तक नेशनल स्कॉलर । 1984, ' भारत की सर्वोत्तम युवा' का पुरस्कार ।
अनुभव : 1980 से 1990 तक उत्तर प्रदेश सरकार में जिला प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी । 1990 से 2003 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर ।
2003 से 2007 तक भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग तथा 'केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो' में निदेशक ।
जनवरी 2008 से भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय में ।
प्रकाशित पुस्तकें : ' 30 दिन में हिंदी सीखें', 'राजभाषा व्यवहार, 'A Few Steps in Learning Hindi.'
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखों और कविताओं का प्रकाशन । आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर वार्त्ताओं तथा परिचर्चाओं में प्रतिभागिता ।
संप्रति : प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय, भारत सरकार में निदेशक ।