₹400
अपने हाथ में एक भी हथियार उठाए बिना एक साधारण शिक्षक ने एक पूरे साम्राज्य को उखाड़ फेंका, नंदवंश को नष्ट कर दिया और मौर्यवंश की स्थापना की। ऐसा क्या था उस शिक्षक के पास? सूक्ष्म संचालन शक्ति! कौन था वह शिक्षक? मूल नाम आचार्य विष्णुगुप्त, जिन्हें अपने पिता के नाम ‘चाणक’ से ‘चाणक्य’ नाम की उपाधि मिली थी।
मैनेजमेंट के मामले में चाणक्य एक माइलस्टोन हैं, जिसे जो कोई भी पढ़ता है, उसे वह स्वीकार ही करना पड़ता है। मैनेजमेंट मानव जीवन का सबसे अनिवार्य हिस्सा है। जितने पहलू मानव जीवन के, उतने ही पहलू मैनेजमेंट के भी हैं। जब हम मैनेजमेंट शब्द को केवल व्यापार के संदर्भ में देखते हैं, तब वह बहुत संकुचित अर्थ दरशाता है। वास्तव में, मैनेजमेंट एक बहुत बड़ी चीज है, जो जीवन के हर पहलू को कवर करती है। हम देखते हैं कि मनुष्य हर क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुँचना चाहता है...वह हर चरण में कुछ नया करना चाहता है, यही शाश्वत सत्य है और इसलिए जीवन के प्रत्येक चरण में मैनेजमेंट न केवल आवश्यक है, बल्कि अनिवार्य भी है।
यह पुस्तक चाणक्य के ‘अर्थशास्त्र’ और ‘पूर्ण चाणक्यनीति’ पर आधारित है। इसमें से बुद्धिमान पाठकों को वह दृष्टि मिल जाएगी, जो वे चाहते हैं। शासक को शासन के संबंध में, व्यापारी को व्यवसाय के संबंध में, गृहस्थ को अपने घर के संबंध में और व्यवस्थापक को संचालन के संबंध में कुछ-न-कुछ तो मिल ही जाएगा।
चंद्रेश जेठालाल मकवाणा प्रसिद्ध कवि, अनुवादक और संपादक हैं। उनका जन्म फूलेत्रा (कड़ी, मेहसाणा) में हुआ था। उनकी उच्च शिक्षा अहमदाबाद में पूरी हुई। उन्होंने एच.बी. कापडि़या में एक शिक्षक के रूप में अपने व्यवसाय की शुरुआत की। इसके अतिरिक्त वह डी.पी.एस. समूह के निर्माण हाईस्कूल-पंचवटी और वसंत स्कूल-धोलका में भी अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं। वह सिर्फ एक शिक्षक ही नहीं, बल्कि एक कलाकार भी हैं। उन्होंने प्रफुल्ल भावसार द्वारा निर्देशित ‘आ मामानु घर केटले’ के प्रोडक्शन मैनेजर के रूप में काम किया है।
वर्ष 2012 में उन्हें इंडियन नेशनल थिएटर (एन.आई.टी.) का ‘शायड़ा अवॉर्ड’ और ‘गुजरात समाचार-समन्वय’ का ‘रवजी पटेल अवॉर्ड’ मिल चुका है। उन्होंने गुजराती फिल्मों में गीतकार के रूप में ‘ओ मारी पागल पद्मनी’ और ‘प्रीत ना करशो परदेशी’ और बाबासाहेब अंबेडकर विश्वविद्यालय के लिए एक गीत लिखा है। उन्होंने बाँग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के सर्वश्रेष्ठ बिक्री उपन्यासों ‘जैसे मेरे बचपन के दिन’ और ‘चाणक्यमेंट’ का अनुवाद किया है।
उनके ‘गीत मारो देश खीलशे गुजरात’ को शौकीन से लेकर प्रधानमंत्री तक सभी ने पसंद किया है।