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Author Dinanath Mishra
Features
  • ISBN : 9789386054708
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Dinanath Mishra
  • 9789386054708
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2017
  • 156
  • Hard Cover
  • 250 Grams

Description

बुरके से बिकनी तक का फासला उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक के फासले से भी ज्यादा है। एक तरफ बुरके में औरतों की आजादी को कैद करने की कोशिश है, दूसरी तरफ बिकनी युग के शुभागमन की तैयारी है। बिकनी युग में सबकुछ आजाद होगा। सबसे ज्यादा आजाद होगी बेहयाई। अखबारवाले भी सवाल पूछने को स्वतंत्र होंगे; बल्कि कह सकते हैं कि वे तो आज भी स्वतंत्र हैं। आप फिल्मी अभिनेत्रियों के साथ उनकी भेंटवार्त्ताएँ पढ़ लीजिए। पहला सवाल होता है कि आप अंग प्रदर्शन के बारे में क्या सोचती हैं? वे जो सोचती हैं वह बताती हैं। ज्यादातर तो कहती हैं कि उन्हें परहेज नहीं है। मुबारक हो। आज की सभ्यताएँ एक अतिवाद से दूसरे अतिवाद तक झूलती रहती हैं। समझिए, बुरके से बिकनी तक। तालिबानीकरण से लेकर औरतों के बिकनीकरण तक।
—इसी पुस्तक से
प्रस्तुत काव्य संग्रह के व्यंग्य-विषयों का चयन व्यापक घटनाचक्र से जुड़कर किया गया है। इसलिए ये व्यंग्य अपने पाठक को विषय की विविधता का सुख देते हैं और अद्यतन समय से परिचय कराते हुए उसकी विद्रूपताओं का समाहार करना भी नहीं भूलते।

The Author

Dinanath Mishra

जन्म : 14 सितंबर, 1937, जोधपुर।
शिक्षा : एम. ए. (गोल्ड मैडल)।
श्री मिश्र पत्रकारिता के क्षेत्र में सन् 1962 में ही आ गए थे। सन् 1967 से लेकर 1974 तक वह ‘पाञ्चजन्य’ साप्‍ताहिक के साथ दिल्‍ली में रहे। पहले सहायक संपादक और अंतिम तीन वर्ष प्रधान संपादन। आपातकाल में वह जेल में रहे। ‘नवभारत टाइम्स’ में डेढ़ दशक तक ब्यूरो चीफ और स्‍थानीय संपादक आदि रहे। सन् 1 9 9 1 से लेकर अब तक वह स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय रहे हैं। इस बीच उनके कॉलम देश के पच्चीस समाचारपत्रों में प्रकाशित होते रहे हैं। जुलाई 1 9 9 8 में वह उत्तर प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। उन्होंने ‘आर.एस.एस. : मि‌थ एंड रियलिटी’ सहित आधा दर्जन पुस्तकों की रचना की है। सन् 1977 में उन्होंने श्री अटल बिहारी वाजपेयी की आपातकाल में लिखी गई ‘कैदी कविराय की कुंडलियाँ’ का संपादन किया। आपातकाल में ‘गुप्‍तक्रांति’ नामक पुस्तक भी लिखी। ‘हर-हर व्यंग्ये’ और ‘घर की मुरगी’ नामक दो संकलन प्रकाशित। वह अपने को पत्रकार ही मानते हैं, साहित्यकार होने का दावा नहीं करते। इसी तरह राज्यसभा का सदस्य होने के बावजूद वह अपने को राजनेता नहीं मानते। उनका नियमित लेखन जारी है।

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