₹450
एक कहावत है—
पैसा गया, तो कुछ गया; स्वास्थ्य गया, तो बहुत कुछ गया पर अगर चरित्र गया तो सबकुछ गया।
अतः आवश्यक है कि व्यक्ति
अपने चरित्र को निर्मल व स्वच्छ रखे; उसके संरक्षण-संवर्धन के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहे। व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष है ‘चरित्र’।
इस दृष्टि से इस पुस्तक में चरित्र-निर्माण की कहानियाँ संकलित की गई हैं, क्योंकि कहानियों का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। इनके द्वारा व्यक्ति के जीवन में प्रेम, त्याग, बलिदान, शिक्षा आदि का संचार होता है। हमारे पौराणिक गं्रथों में अनेक शिक्षाप्रद तथा ज्ञानवर्द्धक कहानियों का समावेश किया गया है। ‘चरित्र-निर्माण की कहानियाँ’ भी इन्हीं ग्रंथों से प्रेरित हैं। इन कहानियों का चयन विशेष रूप से बाल पाठकों की मनोवृत्ति को ध्यान में रखकर किया गया है। लेकिन चरित्र-निर्माण पर आधारित ये कहानियाँ केवल बाल पाठकों में ही नहीं, अपितु प्रत्येक वर्ग के पाठकों में चरित्र-निर्माण का संचार करेंगी।
______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम
पुस्तक परिचय—5
1. समझदार बनो—9
2. फूलों की महक—14
3. अपनी मदद स्वयं करो—18
4. लालच का फल—24
5. ईर्ष्या से दूर रहो—31
6. दुष्टता का परिणाम—36
7. करनी का फल—40
8. ईमानदारी का पुरस्कार—44
9. मेहनत की कमाई —51
10. एकता में बल—53
11. सेवा का सुख—55
12. परिश्रम का फल—58
13. अतिथि-सत्कार—60
14. उपकार का बदला—63
15. स्वयं पर भरोसा करो—65
16. पाप का फल—67
17. घृणा से बचो—70
18. नकल का फल—73
19. कुंगत का परिणाम—75
20. झूठ का फल—77
21. अहंकार का फल —79
22. घमंड से दूर रहो—82
23. स्वार्थ का फल —85
24. सच्चा मित्र—88
25. लालच बुरी बला है—90
26. बुराई से बचो—93
27. साधु का सत्कार—97
28. सच्चाई का पुरस्कार—101
29. भलाई की राह—105
30. बुद्धिमानी का परिणाम—108
31. सच्चाई की जीत—110
32. वीरों की पहचान—114
33. गुरुभक्ति—119
34. जीवों पर दया करो —125
35. भक्ति में शक्ति —130
36. वीरों का सम्मान—135
37. सच्चा योद्धा—140
38. सच्ची मित्रता—145
39. उपकार का फल—148
40. बुद्धिहीनता —151
41. बुद्धि का सदुपयोग —154
42. लोभ का परिणाम —158
43. बुद्धि का प्रयोग—162
44. किसी को कमजोर मत जानो—166
45. कपटी से मित्रता मत करो—168
46. चालाकी का फल—173
47. फूट का लाभ—175
48. बिना विचारे जो करे—177
49. झूठ कभी नहीं छुपता—179
50. चापलूसी का परिणाम—185
51. शत्रु से मुक्ति—189
5 नवंबर, 1964 को नगर नजीबाबाद (उ.प्र.) में जनमे लेखक एवं चित्रकार मुकेश ‘नादान’ ने साहित्य-जगत् में अपनी अलग पहचान बनाई है। विभिन्न विषयों पर संपादित एवं लिखी गई दो सौ से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। बाल पाठकों के लिए अनेक सचित्र एवं शिक्षाप्रद पुस्तकें लिखकर उनमें शिक्षा एवं संस्कृति का संचार किया है। ‘नन्ही मुनिया’, ‘जंगल और आदमी’, ‘शिक्षाप्रद बाल कहानियाँ’, ‘शिक्षाप्रद बाल गीत’ जैसी पुस्तकें आज भी बाल पाठकों की पहली पसंद बनी हुई हैं। विभिन्न विषयों पर उपयोगी श्रंखला में लिखी ‘महानायक ए.पी.जे. अब्दुल कलाम’ (जीवनी), ‘प्रदूषण का कहर’, ‘बुढ़ापा : वरदान या अभिशाप’, ‘विश्व प्रसिद्ध महान् संत’ (जीवनियाँ), ‘बचपन॒: दशा और दिशा’ आदि पुस्तकें भी लोकप्रिय हुई हैं।