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‘विकासवाद का सिद्धांत’ के लिए संपूर्ण विश्व में ख्यात चार्ल्स डार्विन दुनिया के श्रेष्ठतम वैज्ञानिकों में से एक थे। बचपन से ही प्राकृतिक वस्तुओं में रुचि रखनेवाले चार्ल्स ने पाँच वर्ष समुद्री यात्रा में बिताए और जगह-जगह की पत्तियाँ, लकड़ियाँ, पत्थर, कीड़े-मकोड़े व अन्य जीव तथा हड्डियाँ एकत्रित कीं।
उन्होंने अपना शोध कार्य ग्रामीण इलाके के दूर-दराज स्थित एक मकान में आरंभ किया था। तभी से उनके मस्तिष्क में ‘जीवोत्पत्ति का सिद्धांत’ जन्म ले चुका था। सन् 1844 में उन्होंने उसे विस्तार से कलमबद्ध भी कर लिया। वे लगातार प्रयोग-दर-प्रयोग करके अपने सिद्धांत को प्रामाणिक बनाते चले गए।
डार्विन ने जीवन के हर पहलू पर प्रयोग किए। उन्होंने पत्तों, फूलों, पक्षियों, स्तनपायी जीवों—सभी को अपने प्रयोगों के दायरे में लिया। विभिन्न प्रकार के मांसाहारी पौधों से संसार को अवगत करानेवाले डार्विन ने निरीह केंचुओं के व्यापक योगदान पर भी प्रकाश डाला। वे अपने सिद्धांतों को अनेक दृष्टिकोणों, तथ्यों व तरीकों से परखते थे। उनका संपूर्ण जीवन प्रयोगों में ही बीता। संसार को ‘विकासवाद’ का प्रसिद्ध सिद्धांत इन्हीं प्रयोगों की देन है।
प्रस्तुत है एक महान् वैज्ञानिक की महान् जीवन-गाथा, जो रोचक व पठनीय होने के साथ ही संग्रहणीय भी है।
जन्म : 12 जनवरी, 1960 को इटावा (उ.प्र.) में।
शिक्षा : विकलांग होने के बावजूद हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट की परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। सन् 1983 में रुड़की विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त कर सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (CEL) में सहायक अभियंता के रूप में नियुक्त हुए। विभिन्न विभागों में काम करते हुए आजकल मुख्य प्रबंधक के रूप में काम कर रहे हैं।
अब तक कुल 32 पुस्तकें तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 300 लेख प्रकाशित।
पुरस्कार-सम्मान : सन् 1996 में राष्ट्रपति पदक, 2001 में ‘हिंदी अकादमी सम्मान’ तथा योजना आयोग द्वारा ‘कौटिल्य पुरस्कार’। सन् 2003 में अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय द्वारा ‘प्राकृतिक ऊर्जा पुरस्कार’, 2004 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा ‘सृजनात्मक लेखन पुरस्कार’, विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा ‘डॉ. मेघनाद साहा पुरस्कार’ तथा महासागर विकास मंत्रालय द्वारा ‘हिंदी लेखन पुरस्कार’।