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"सबकुछ इस बात पर निर्भर करता है कि जो शेयर 5-10-15-20 प्रतिशत भागने वाला है, आप उसके प्राइस मूवमेंट से उसको पहचान सकें कि वह अब बढ़ने वाला है या गिरने वाला है।
इसे 'प्राइस एक्शन मूवमेंट' कहते हैं; जैसे सूर्य निकलने से पहले ही ब्राह्ममुहूर्त में रात का अंधकार दूर होने लगता है, आकाश में लालिमा छा जाती है, जिससे आभास हो जाता है कि सूर्य निकलने वाला है।
आजकल के शॉर्ट वीडियो स्टेटस और रील देख-देखकर मनुष्यों के एकाग्र होने की क्षमता कम हो रही है तथा 30 सेकंड तक पुस्तक पढ़कर वे आदत के मुताबिक उस पाठ को वहीं अधूरा छोड़कर, पन्ने पलटकर आगे से पढ़ने लगते हैं, ताकि पुस्तक में 30 सेकंड का कोई जादुई शॉर्टकट बताया गया हो तो उसे पढ़कर फटाफट ट्रेडिंग में मास्टर बन सकें।
आप इसे एक पवित्र संयोग समझें कि यह पुस्तक आपके हाथों में आ गई है। इसलिए आप इसे साधारण पुस्तक न समझकर एक पवित्र पुस्तक समझकर पूर्ण विश्वास व आदर के साथ इसका एक-एक पेज समझ-समझकर पढ़ें और आत्मसात् करें। आप भले ही रोज एक-दो पेज ही पढ़ें, परंतु जो भी पढ़ें, उसे पूरी तरह से आत्मसात् किए बगैर आगे न बढ़ें। शेयर मार्किट में सफलता पाने के व्यावहारिक गुरुमंत्र बताती एक व्यावहारिक प्रामाणिक पुस्तक ।"
भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् श्री सूर्यकान्त बाली ने भारत के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ के सहायक संपादक (1987) बनने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। नवभारत के स्थानीय संपादक (1994-97) रहने के बाद वे जी न्यूज के कार्यकारी संपादक रहे। विपुल राजनीतिक लेखन के अलावा भारतीय संस्कृति पर इनका लेखन खासतौर से सराहा गया। काफी समय तक भारत के मील पत्थर (रविवार्ता, नवभारत टाइम्स) पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा, जो पर्याप्त परिवर्धनों और परिवर्तनों के साथ ‘भारतगाथा’ नामक पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुँचा। 9 नवंबर, 1943 को मुलतान (अब पाकिस्तान) में जनमे श्री बाली को हमेशा इस बात पर गर्व की अनुभूति होती है कि उनके संस्कारों का निर्माण करने में उनके अपने संस्कारशील परिवार के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज और उसके प्राचार्य प्रोफेसर शांतिनारायण का निर्णायक योगदान रहा। इसी हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. के बाद अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ लिया। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों—‘भारत की राजनीति के महाप्रश्न’ तथा ‘भारत के व्यक्तित्व की पहचान’ के अलावा श्री बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें—‘Contribution of Bhattoji Dikshit to Sanskrit Grammar (Ph.D. Thisis)’, ‘Historical and Critical Studies in the Atharvaved (Ed)’ और महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ प्रकाशित हैं। श्री बाली ने वैदिक कथारूपों को हिंदी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया—‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। विचारप्रधान पुस्तकों ‘भारत को समझने की शर्तें’ और ‘महाभारत का धर्मसंकट’ ने विमर्श का नया अध्याय प्रारंभ किया।