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लोककथा और लोकगाथा का विपुल भंडार है छत्तीसगढ़ के आदिवासी, दलित और पिछड़े समाज के पास।
जीवन के विविध रंगों को भिन्न-भिन्न लोककथाओं में हम देख पाते हैं। मनुष्य की प्रवृत्तियों पर कथाओं में संकेत हैं। मनुष्य और वन-पशु तथा मछली, चूहा, मेढक, साँप, दीपक, खाद्यान्न, पेड़—सभी पशु, नदी, सूर्य, आकाश आदि कथाओं में पात्रों की भूमिका निभाते हैं। छत्तीसगढ़ की लोककथाओं के इस संकलन में ऐसी कथाएँ चुनी गई हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ी रंग पूरे प्रभाव के साथ उपस्थित है। इन लोककथाओं में छत्तीसगढ़ की संस्कृति और युगीन परंपराओं का इतिहास झलकता है। यहाँ की संस्कृति, लोक-मान्यता, लोककला, लोकगीत और लोक-परंपराओं को इन लोककथाओं के माध्यम से पाठक जानें-समझें, यह प्रयास किया गया है।
परदेशीराम वर्मा
जन्म : 18 जुलाई, 1947
पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से 2003 में डी.लिट्।
प्रमुख रचनाएँ : आठ कथा-संग्रह, तीन उपन्यास, नवसाक्षर साहित्य की छह पुस्तकें, संस्मरण की दस पुस्तकें, एक नाटक, एक बाल-काव्य-संग्रह, एक बाल-कथा-संग्रह, छत्तीसगढ़ की लोककथाएँ, दो जीवनी, छत्तीसगढ़ पर केंद्रित चार वैचारिक पुस्तकें।
सम्मान : ‘पंडित सुंदरलाल शर्मा राज्य अलंकरण-2013’; पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय द्वारा 2005 में ‘बख्शी साधना सम्मान’; ‘प्रथम महंत अस्मिता सम्मान’; म.प्र. शासन के संस्कृति विभाग का ‘सप्रे पुरस्कार’; ‘अखिल भारतीय प्रेमचंद सम्मान-2008’; ‘छत्तीसगढ़ प्राईड अवार्ड-2014’; ‘स्पेनिन पुरस्कार’; हिंदी की पाँच कहानियों को ‘अखिल भारतीय पुरस्कार’। कहानियों का बांग्ला, तमिल, उडि़या एवं मराठी में अनुवाद; अनेक रचनाएँ विभिन्न पाठ्यक्रमों में सम्मिलित।
संपादन : ‘अगासदिया’ एवं ‘आगमन’ त्रैमासिक।
सलाहकार संपादक : ‘आदिवासी सत्ता’, ‘सन्मति एक्सप्रेस’।
संपर्क : एल.आई.जी.-18, आमदी नगर, हुड़को, भिलाई (छ.ग.) 490009
मो. : 9827993494, 7974817580
इ-मेल : pardeshi.ram.verma@gmail.com