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यह पुस्तक एक लड़की से माँ के सफर की कहानी है, जो लेखिका द्वारा पूरी आत्मा से कागज पर शब्दों द्वारा उकेरी है। इस कहानी को पाठक अपनी जिंदगी से भी जोड़कर देख सकते हैं, क्योंकि इसे दिल की संपूर्ण भावनाओं से ओत-प्रोत कर आत्मा से शब्दों में बाँधा गया है। अगर सच्ची लगन, खुद पर यकीन और हौसला बुलंद हो तो कैसे भी हालात का सामना किया जा सकता है और अंत में जीत सत्य और उम्मीद की होती है।
उपन्यास ‘छायात्मजा’ (एक बेटी... माँ सी) अपनी कथावस्तु के चलते पाठकों को नई ताजगी का एहसास करा पाएगा। ऐसी उम्मीद है! इस कहानी में जहाँ प्रेम के कई रंग एक साथ विभिन्न एहसासों से सराबोर करते हैं तो वहीं छाया के प्यार का सहज, निस्स्वार्थ और करुण चेहरा भी दिखता है। कभी दो बहनों के आपसी रोष तो कभी उनके त्याग, समर्पण और संघर्ष की अनूठी कहानी भी दिखती है। इस उपन्यास की कहानी लिखने के पीछे लेखिका की सकारात्मक सोच और हार न मानने का जज्बा है, जो पाठकों को निश्चित ही प्रेरित कर पाएगा।
स्वेता परमार ‘निक्की’ का जन्म अप्रैल 1976 में राजस्थान के ‘गुलाबी शहर’ जयपुर में हुआ। स्कूली शिक्षा यहीं से हुई। राजस्थान विश्वविद्यालय से इंग्लिश ऑनर्स किया, तदुपरांत हरियाणा के रोहतक स्थित महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से बी.एड. पूरी की। विवाह के बाद पहले दिल्ली में और अब उत्तर प्रदेश में अपने परिवार के साथ रहती हैं।
पेशे से बिजनेस वुमेन होने के बावजूद मन लेखनी में रमा रहा। अपनी पहली ही किताब ‘द जेस्टफुल हाइव’ (अंग्रेजी) में जिंदगी के तमाम एहसासों-भावनाओं को बड़ी सहजता से पेश करके चर्चा में आईं और उसे पाठकों ने खूब पसंद किया। मन से निकले विचारों को सहज रूप से कागज पर उकेरने की उनकी खूबी पाठकों को अपनी ओर खींचती है।