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अनेक स्कूलों में शिक्षण को इतना नैतिक बना दिया गया है कि बच्चा क्या सीख रहा है, क्या ज्ञान उसे मिल रहा है, इस ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता। ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत से माता-पिता, अध्यापक और पेशेवर लोग अपना जीवन एवं अपने बच्चों का जीवन इस तरह ढालने का दोष अपने मत्थे मढ़ रहे हैं मानो यह जीवन जीवन नहीं, एक तेज दौड़ है। वास्तव में, जीवन कोई दौड़ नहीं है; बल्कि जीवन की गति लंबी दौड़ से अधिक मिलती-जुलती है अथवा उसके जैसी है। स्पष्ट है, आज की पीढ़ी को जिन प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेना है, उनकी तैयारी के लिए काफी हद तक उन्हें अनुपयुक्त शिक्षा दी जा रही है।
ऐसे ही कुछ विषय हैं, जिनकी ओर आजकल के माता-पिता, अध्यापकों और वयस्कों—विशेषकर अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यह पुस्तक लिखी गई है।
यह पुस्तक जीवन की लंबी दौड़ में आगे निकलनेवाले महारथियों के जीवन की झलक दिखाती है। यह बताती है कि सफलता पानेवालों को तेजी से दौड़ने की जरूरत नहीं होती। जरूरत है तो केवल जीवन की लंबी दौड़ को लगातार दौड़ने की, बेशक आपके कदम छोटे हों। जिंदगी के टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर जमकर कदम रखकर दौड़ने के मंत्र बताती एक व्यावहारिक पुस्तक।
“लेखक ने मुखर होकर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की आलोचना की है।”—डेक्कन क्रॉनिकल
“जैसा कि आमिर खान 3 इडियट्स में चिल्लाकर कहता है, ‘मुझे ग्रेडिंग सिस्टम पसंद नहीं है।’ वी. रघुनाथन भी इस पुस्तक में यही विचार व्यक्त करते हैं।” —द न्यू इंडियन एक्सप्रेस
“रटंत विद्या और अंकों के प्रतिशत के महत्त्व वाली व्यवस्था के संदर्भ में इस पुस्तक में कम चर्चित नामों की प्रेरक कहानियाँ दी गई हैं, जो शुरू में तो औसत ही थे और बाद में सचमुच बड़े बने।” —द हिंदू
“इस पुस्तक में अभिभावकों और शिक्षकों के लिए यह संदेश है कि बच्चों को मुक्त रूप से विकसित होने का अवसर दें और अनुशासन की जंजीरों में ज्यादा न जकड़ें।” —एक्सप्रेस बज
“शिक्षकों और अभिभावकों के लिए उद्देश्यपूर्ण निर्देशिका।” —द असम ट्रिब्यून
“इस रुचिकर और सूचनाप्रद पुस्तक में लेखक ने छोटों और बड़ों के लिए जीवन से सर्वोत्तम हासिल करने के अमूल्य उपाय बताए हैं।” —मायबंगलौर.कॉम
“शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावशाली पृष्ठभूमि रखनेवाले रघुनाथन ने जीवन की दौड़ के बारे में अपने विचार व्यावहारिक और वास्तविक रूप में प्रस्तुत किए हैं।”—मनीलाइफ
व्यावसायिक जीवन एक शिक्षाविद् के रूप में शुरू किया। वह लगभग दो दशक आई.आई.एम.,अहमदाबाद में फाइनेंस के प्रोफेसर तथा चार वर्षों तक आई.एन.जी. वैश्य बैंक के अध्यक्ष रहे और फिर जी.एम.आर. ग्रुप में चले गए, जो निर्माण-कार्य करनेवाली एक बड़ी कंपनी है। संप्रति वह जी.एम.आर. वरलक्ष्मी फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं। सन् 1990 से वह यूनिवर्सिटी ऑफ बॉकोनी, मिलान में एक सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य करते आ रहे हैं।
अब तक उनके 450 शोधपत्र, लेख तथा 9 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी 2 पुस्तकें ‘गेम्स इंडियंस प्ले – व्हाय वी आर द वे वी.आर.’ और ‘स्टॉक एक्सचेंजेज – इन्वेस्टमेंट एंड डिराइवेटिव्स’ बहुत लोकप्रिय हुई हैं। ‘दि इकोनॉमिक टाइम्स’ के गेस्ट कॉलम में नियमित लेख तथा पत्रिकाओं में भी लेख प्रकाशित होते हैं। राष्ट्रीय दैनिक में व्यंग्य-चित्र (कार्टून) भी प्रकाशित। उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर शतरंज प्रतियोगिता में भाग लिया है।
उनकी वेबसाइट है—www.vraghunathan.com