लोग असली जीवन भूल गए हैं, वे डुप्लीकेटी से ही काम चलाते हैं। जैसे एक इनसान गलती से अपने घर की चाभी निगल गया, लेकिन एक महीने के बाद डॉक्टर के पास गया और कहा, ‘मैं अपने घर की चाभी निगल गया हूँ, उसे निकलवाना है।’ डॉक्टर ने पूछा, ‘आपने चाभी कब निगली थी?’ उसने जवाब दिया, ‘एक महीना पहले।’
उस इनसान का यह जवाब सुनकर डॉक्टर हैरान रह गया और पूछा, ‘फिर आप अभी चाभी निकलवाने के लिए क्यों आए हैं? इतने दिन कैसे रहे?’ उसने जवाब दिया, ‘अब तक तो मैं अपनी डुप्लीकेट (नकली) चाभी से काम चला रहा था, लेकिन आज वह भी खो गई है, इसलिए तो ऑरिजनल (असली) चाभी निकलवाने के लिए आपके पास आया
हूँ। आज ऑरिजनल चाभी की जरूरत पड़ी है।’
यदि इस चुटकुले को समझा जाए तो इसमें गहरी समझ छिपी है। चुटकुलेवाले इनसान पर तो हम आसानी से हँस लेते हैं, परंतु हम अपने जीवन में भी ऐसी गलती करते हैं। असली आनंद अंदर है, लेकिन लोग डुप्लीकेट आनंद से काम चलाते रहते हैं। जब वह आनंद भी खो जाता है तब वे सोचते हैं कि ‘चलो अभी सत्संग में चलते हैं, वहाँ कुछ तो मिलेगा।’
ऑरिजनल चाभी पाने के लिए आपको पहले चाहिए सोचने की तरकीब। तरकीब है थोड़ा सोचें, अच्छा सोचें। आइए, इस तरकीब का उपयोग सीखने के लिए कुछ करें। सोचने की यह तरकीब आपको इस पुस्तक द्वारा प्राप्त होगी।
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अनुक्रमणिका
प्रस्तावना ब्लैक-ग्रे-ग्रेस-ग्रेट — Pgs. 9
दिन-1 मनन के फूल — Pgs. 13
दिन-2 स्वास्थ्य एकमात्र सत्य — Pgs. 19
दिन-3 अभी मैं ठीक हो रहा हूँ — Pgs. 25
दिन-4 गुण, अवगुण ज्ञान — Pgs. 31
दिन-5 नफरत का अंत—प्रथम प्रार्थना — Pgs. 37
दिन-6 शैतान की चिंता, क्रोध का शैतान — Pgs. 43
दिन-7 मोहताज या मोहतेज — Pgs. 49
दिन-8 आपकी आदत, आपकी पहचान — Pgs. 55
दिन-9 सुख तो आना ही था — Pgs. 61
दिन-10 समाधान देखने की कला — Pgs. 67
दिन-11 चरित्रवान् इनसान का ज्ञान — Pgs. 73
दिन-12 जिम्मेदारी लेकर आजादी पाएँ — Pgs. 79
दिन-13 टाइम पास तो आनंद फेल — Pgs. 85
दिन-14 वचन, मर्यादा और चुनौती — Pgs. 91
दिन-15 फैसला आपके हाथ में — Pgs. 97
दिन-16 सच्चा लीडर कैसे बनें — Pgs. 103
दिन-17 प्रशिक्षण का महत्त्व — Pgs. 109
दिन-18 धन पर ध्यान—ध्यान पर धन — Pgs. 115
दिन-19 लोक-व्यवहार कुंजी — Pgs. 121
दिन-20 खुश रहने का कारण — Pgs. 127
दिन-21 प्रेम पाने का मार्ग — Pgs. 133
दिन-22 नक्षत्र नहीं, विचार — Pgs. 139
दिन-23 सबसे श्रेष्ठ कर्म — Pgs. 145
दिन-24 मन : ए टू जेड — Pgs. 151
दिन-25 पाने से पहले दिलाएँ — Pgs. 157
दिन-26 ईश्वर का पहला संदेश — Pgs. 163
दिन-27 ईश्वर के प्रति प्रेम — Pgs. 169
दिन-28 बेशर्त भक्ति — Pgs. 175
दिन-29 ईश्वर के निकट कैसे रहें — Pgs. 181
दिन-30 ठगोरी से कैसे बचें — Pgs. 187
ग्रे पीरियड ग्रेस पीरियड — Pgs. 195
तेजगुरु सरश्री की आध्यात्मिक खोज उनके बचपन से प्रारंभ हो गई थी। अपने आध्यात्मिक अनुसंधान में लीन होकर उन्होंने अनेक ध्यान-पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें विविध वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर अग्रसर किया।
सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्त कड़ी है—समझ (Understanding)।
सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।
सरश्री ने दो हजार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सत्तर से अधिक पुस्तकों की रचना की है। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनूदित हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं।