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चीन आज भारत के लिए एक बाह्य सुरक्षा संकट होने के साथ ही आतंकवाद का पोषक व गंभीर आर्थिक चुनौतियों का कारण भी बनता जा रहा है। सन् 1962 में आक्रमण करके हमारे 38,000 वर्ग किमी. क्षेत्रफल अक्साई चिन के पठार पर अधिकार कर लेने के बाद आज भी वह भारत की 90,000 वर्ग किमी. भूमि को जब चाहे अपना कहकर हमारी सीमा में घुसपैठ भी करता रहता है।
चीन की ऐसी भारत विरोधी व शत्रुतापूर्ण गतिविधियों के उपरांत भी जिस प्रकार भारत के बाजारों में आज सब प्रकार के चीनी उत्पादों की बाढ़-सी आई हुई है, यह और भी अधिक चिंताजनक है।
एक-एक करके देश के कई उद्योग व उद्योग संकुल (इंडस्ट्री क्लस्टर्स) चौपट होते जा रहे हैं। देश में साइकिल उद्योग, खिलौना उद्योग, फर्नीचर उद्योग, स्टेशनरी उद्योग और काँच के उद्योग से लेकर इलेक्ट्रॉनिक व विद्युत् उपकरणपर्यंत अनगिनत व लगभग सभी प्रकार के उद्योग चीनी आयातों व राशिपतन (डंपिंग) से प्रभावित हो रहे हैं।
चीन की ओर से आर्थिक एवं भू-राजनैतिक चुनौतियों से आगाह करनेवाली एक पठनीय पुस्तक।
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अनुक्रम
भूमिका — Pgs. 5
1. चीन की शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयाँ — Pgs. 13
2. डोकलाम व कुछ अन्य संघर्ष एक सिंहावलोकन — Pgs. 37
3. चीनी वस्तुओं से बढ़ती उद्यमबंदी व बेरोजगारी — Pgs. 47
4. गंभीर संकट में चीन ऐसे में भारत क्यों बने तारणहार — Pgs. 68
5. वन बेल्ट वन रोड : हमारी संप्रभुता को चुनौती व
औपनिवेशिक विस्तार — Pgs. 83
6. दौलत बेग ओल्डी में वर्ष 2013 का अनुचित नरम रुख — Pgs. 95
7. सीमा पर निरंतर दबाव और भारत की घेराबंदी — Pgs. 109
8. वैश्विक भू-राजनैतिक संतुलन की आवश्यकता — Pgs. 117
9. चीन के संबंध में हमारी ऐतिहासिक गलतियाँ — Pgs. 124
10. चीन के विरुद्ध प्रभावी रणनीति आवश्यक — Pgs. 142
परिशिष्ट-1 — Pgs. 156
परिशिष्ट 2 — Pgs. 163
परिशिष्ट-3 — Pgs. 171
परिशिष्ट-4 — Pgs. 176
परिशिष्ट-5 — Pgs. 181
परिशिष्ट-6 — Pgs. 184
परिशिष्ट-7 — Pgs. 189
परिशिष्ट-8 — Pgs. 192
प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा सन् 1978 से वाणिज्य एवं प्रबंध संकायों में स्नातकोत्तर स्तर पर अध्यापन कर रहे हैं। वाणिज्य एवं प्रबंध के क्षेत्र में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर के छात्रों के लिए 11 पुस्तकें लिखी हैं। इनके मार्गदर्शन में 15 छात्रों ने पीएच.डी. स्तर का शोध एवं 80 से अधिक अन्य शोध परियोजनाओं का निर्देशन किया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 230 से अधिक लेख एवं शोधपत्र प्रकाशित हुए हैं।
आर्थिक एवं वैश्विक व्यापार संबंधी विषयों में रुचि होने से प्रो. शर्मा ने स्वदेशी जागरण मंच की ओर से, विश्व व्यापार संगठन (ङ्ख.ञ्ज.हृ.) के पाँचवें, छठे एवं दसवें मंत्रिस्तरीय द्विवार्षिक सम्मेलन में क्रमशः 2003 में केन्कुन (मेक्सिको), 2005 में हांगकांग व 2015 में नैरोबी (केन्या) में भाग लिया।
प्रबंध के क्षेत्र में प्रो. शर्मा अंतर्व्यक्ति व्यवहार की प्रभावशीलता, समय प्रबंधन, संगठन विकास, शून्य-आधारित बजट परिवर्तनों के प्रबंध, नेतृत्व विकास आदि विषयों के प्रशिक्षक भी हैं।
इन्होंने आर्थिक वैश्वीकरण, विश्व व्यापार संगठन, स्वदेशी, विनिवेश आदि विषयों पर 30 लघु पुस्तिकाएँ भी लिखी हैं। वर्तमान में प्रो. शर्मा स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक हैं।
इ-मेल : bpsharma131@yahoo.co.in