₹600
बदले हुए रणनीतिक सिद्धांत के मद्देनजर चीन भारत को अमेरिका के एक हथियार के रूप में देखता है। वह पिछले कई दशकों से भारत को घेरे में लेने और उसे दक्षिण एशिया में उलझाकर रखने की सोची-समझी नीति अपना रहा है। पाकिस्तान को जितनी चीन की ओर से हथियारों और अन्य साधनों की मदद मिली है उतनी पश्चिम के किसी देश से नहीं मिली। उत्तर में चीन ने तिब्बत का सैन्यकरण कर लिया है। उधर पूर्व में उसने बँगलादेश के साथ एक सैन्य समझौता कर लिया है। पूर्व में ही और आगे बढ़ें तो एक ओर जहाँ हम म्याँमार को लोकतंत्र का हवाला देकर झिड़क रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चीन उसे अपना आश्रित बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ चुका है।
और यहाँ हम अपनी आँखें बंद किए बैठे हैं। साथ ही ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का राग और तेजी से अलाप रहे हैं।
—इसी पुस्तक से
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक श्री अरुण शौरी की यह पुस्तक चीन द्वारा हासिल की जानेवाली शक्तियों, उसकी रणनीतियों और भारत के संदर्भ में उनके परिणामों की समीक्षा तो करती ही है, भारत-चीन संबंधों के अतीत, वर्तमान व भविष्य की भी पड़ताल करती है।
_______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम
1. उधार का चाकू — Pgs. 13
2. एकाग्रचित्त क्रिया-कलाप — Pgs. 42
3. हमें अपनी क्षमताओं को छिपाना चाहिए — Pgs. 89
4. संवेदनशील अंग — Pgs. 155
5. अपना-अपना हित — Pgs. 176
6. साही या मोर? — Pgs. 204
7. नक्सलवादी हिंसा में वृद्धि—वास्तविक कारण ही वास्तविक निदान — Pgs. 237
सन् 1941 में जालंधर (पंजाब) में जनमे श्री अरुण शौरी ने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद सिराक्यूज यूनिवर्सिटी, अमेरिका से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। राजग सरकार में वह विनिवेश, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों सहित कई अन्य विभागों का कार्यभार सँभाल चुके हैं। ‘बिजनेस वीक’ ने वर्ष 2002 में उन्हें ‘स्टार ऑफ एशिया’ से सम्मानित किया था और ‘दि इकोनॉमिक टाइम्स’ द्वारा उन्हें ‘द बिजनेस लीडर ऑफ द इयर’ चुना गया था। ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’, ‘दादाभाई नौरोजी पुरस्कार’, ‘फ्रीडम टु पब्लिश अवार्ड’, ‘एस्टर पुरस्कार’, ‘इंटरनेशनल एडिटर ऑफ द इयर अवार्ड’ और ‘पद्मभूषण सम्मान’ सहित उन्हें कई अन्य राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वे ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के संपादक रह चुके हैं। विएना स्थित अंतरराष्ट्रीय प्रेस संस्था ने पिछली अर्ध-शताब्दी में प्रेस की स्वतंत्रता की दिशा में किए गए उनके कार्यों के लिए उन्हें विश्व के पचास ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम हीरोज’ में स्थान दिया है। पच्चीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।